बिना नाव पतवार हुए हैं.
क्यों गुलाब के खार हुए हैं.
दर्शन बिन बेज़ार बहुत थे.
कर दर्शन बेज़ार हुए हैं.
तेवर बिन लिख रहे तेवरी.
जल बिन भाटा-ज्वार हुए हैं.
माली लूट रहे बगिया को-
जनप्रतिनिधि बटमार हुए हैं.
कल तक थे मनुहार मृदुल जो,
बिना बात तकरार हुए हैं.
सहकर चोट, मौन मुस्काते,
हम सितार के तार हुए हैं.
महानगर की हवा विषैली.
विघटित घर-परिवार हुए हैं.
सुधर न पाई है पगडण्डी,
अनगिन मगर सुधार हुए हैं.
समय-शिला पर कोशिश बादल,
'सलिल' अमिय की धार हुए हैं.
* * * * *
21 मार्च 2010
लघुकथा -
-नव वर्ष का उपहार /सुधा भार्गव
नव वर्ष की तरंग में उत्सव - महोत्सवों की बाढ़ आ गयी थी और उसमें बहे जा रहे थे नई पीढ़ी के नये जवान I जगह -जगह पुलिस के जवान तैनात थे I कुछ गंभीर ,कुछ बातों में मशगूल i
-क्या मस्ती में झूम रहे हैं ,पीने की हद कर दी I
-पीने दो ,यही उम्र तो है बेफिक्री की I
-इस बेफिक्री ने ही तो मुझे फिक्र में डाल दिया है I कहीं हंगामा खड़ा न कर दें ये I
-चुप बैठे रहो I इन्हें छेड़ना ठीक नहीं I बिगड़े रहीस हैं I सांड की तरह अपने सींगों से हमें कभी भी घायल कर देंगे I
तभी एक लड़की आई , पुलिस जवान से बोली -अंकल नए वर्ष का आपके लिए उपहार i
जवान ने इधर - उधर नजर फेंकी -कोई देख तो नहीं रहा है फिर बाज की तरह झपट्टा मारकर पैकिट को दबोच लिया फुर्ती से उसे खोला I देखा - - -एक दर्जन चूड़ियाँ - - - झिलमिला रही थीं I
* * * * *
-नव वर्ष का उपहार /सुधा भार्गव
नव वर्ष की तरंग में उत्सव - महोत्सवों की बाढ़ आ गयी थी और उसमें बहे जा रहे थे नई पीढ़ी के नये जवान I जगह -जगह पुलिस के जवान तैनात थे I कुछ गंभीर ,कुछ बातों में मशगूल i
-क्या मस्ती में झूम रहे हैं ,पीने की हद कर दी I
-पीने दो ,यही उम्र तो है बेफिक्री की I
-इस बेफिक्री ने ही तो मुझे फिक्र में डाल दिया है I कहीं हंगामा खड़ा न कर दें ये I
-चुप बैठे रहो I इन्हें छेड़ना ठीक नहीं I बिगड़े रहीस हैं I सांड की तरह अपने सींगों से हमें कभी भी घायल कर देंगे I
तभी एक लड़की आई , पुलिस जवान से बोली -अंकल नए वर्ष का आपके लिए उपहार i
जवान ने इधर - उधर नजर फेंकी -कोई देख तो नहीं रहा है फिर बाज की तरह झपट्टा मारकर पैकिट को दबोच लिया फुर्ती से उसे खोला I देखा - - -एक दर्जन चूड़ियाँ - - - झिलमिला रही थीं I
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लघुकथा
पागल /सुधा भार्गव
माली की मेहनत से तीनों फूल खिलखिला पड़े पर एक को अच्छा नहीं लगा I अकड़कर बोला --मैं तुम सबसे बड़ा हूं I मुझसे पूछकर हँसना होगा I फूल जब हँसते बड़े भाई की आज्ञा चाहते ,वह मना कर देता I उनके रास्ते में बड़े -बड़े पत्थर डाल देता I आंधी -तूफान आने पर बार -बार पत्थरों से रगड़ खाकर वे घायल हो जाते I वे हँसना भूल गये I छोटा तो गुस्से में आकर क्यारी ही छोड़ कर अन्यत्र चला गया I
मझले में साहस था , वह सुनता बड़े की मगर करता मन की I वह जानता था अपने स्वार्थ की खातिर बड़ा कुछ भी कहकर उसको अपमानित कर सकता है लेकिन हद से गुजर जायेगा यह उसने कभी सोचा न था I
एक बार उसकी हंसी खुले आकाश के नीचे दूर -दूर तक गूँजती थी I तितलियाँ उसकी सुन्दरता पर मोहित होकर उसके इर्द गिर्द उड़ रही थीं , भोंरों की आवाज कानों में रस घोल रही थी I बड़े फूल की तो भृकुटियाँ तन गईं I उसने निशाना लगाकर मझले पर कंकड़ फेंका | वह डाल से दूर जा छिटका,साथ में पत्तियां भी झरझर हो गईं I वह कराहया,सहारे के लिए फड़ फड़ाया I कोई उस पर हंसा ,किसी ने उसे बेवकूफ कहा I एक शुभ चिन्तक से लगनेवाले ने तो पागल की उपाधि भी दे डाली I घिसटते -घिसटते उसके हाथ कुछ टकराया I उसने उसे थाम लिया I उसका चुकता धैर्य बच गया I रात दिन उसे पकड़ कभी रोता ,कभी दीवार से सिर टकराता --कैसे जीऊंगा,कैसे खिलूँगा ,कैसे अपनों को खिलाऊँगा I उसके साथ उसके साथी भी मुरझा रहे थे I धैर्य ने उसका साथ दिया I उससे मिली ऊर्जा और वह घुटुनों चला ऐसा कि उठ खड़ा हुआ वह भी मुट्ठियाँ तानकर I बड़े फूल ने उससे टकराना बंद कर दिया पर छोटे की तरफ हाथ बढ़ाने से बाज न आया I वह तो चाहता था मझला फूल अकेला पड़ जाये ,घुटन -तड़पन उसे अवसाद में डुबो दे I मझला फूल सँभल गया था I उसने कुचली उदात्त भावनाओं को जड़ों से उखाड़ फेंका मगर अपनी जड़ों की खुशबू वह जीवन भर तलाशता रहा I
* * * *
माली की मेहनत से तीनों फूल खिलखिला पड़े पर एक को अच्छा नहीं लगा I अकड़कर बोला --मैं तुम सबसे बड़ा हूं I मुझसे पूछकर हँसना होगा I फूल जब हँसते बड़े भाई की आज्ञा चाहते ,वह मना कर देता I उनके रास्ते में बड़े -बड़े पत्थर डाल देता I आंधी -तूफान आने पर बार -बार पत्थरों से रगड़ खाकर वे घायल हो जाते I वे हँसना भूल गये I छोटा तो गुस्से में आकर क्यारी ही छोड़ कर अन्यत्र चला गया I
मझले में साहस था , वह सुनता बड़े की मगर करता मन की I वह जानता था अपने स्वार्थ की खातिर बड़ा कुछ भी कहकर उसको अपमानित कर सकता है लेकिन हद से गुजर जायेगा यह उसने कभी सोचा न था I
एक बार उसकी हंसी खुले आकाश के नीचे दूर -दूर तक गूँजती थी I तितलियाँ उसकी सुन्दरता पर मोहित होकर उसके इर्द गिर्द उड़ रही थीं , भोंरों की आवाज कानों में रस घोल रही थी I बड़े फूल की तो भृकुटियाँ तन गईं I उसने निशाना लगाकर मझले पर कंकड़ फेंका | वह डाल से दूर जा छिटका,साथ में पत्तियां भी झरझर हो गईं I वह कराहया,सहारे के लिए फड़ फड़ाया I कोई उस पर हंसा ,किसी ने उसे बेवकूफ कहा I एक शुभ चिन्तक से लगनेवाले ने तो पागल की उपाधि भी दे डाली I घिसटते -घिसटते उसके हाथ कुछ टकराया I उसने उसे थाम लिया I उसका चुकता धैर्य बच गया I रात दिन उसे पकड़ कभी रोता ,कभी दीवार से सिर टकराता --कैसे जीऊंगा,कैसे खिलूँगा ,कैसे अपनों को खिलाऊँगा I उसके साथ उसके साथी भी मुरझा रहे थे I धैर्य ने उसका साथ दिया I उससे मिली ऊर्जा और वह घुटुनों चला ऐसा कि उठ खड़ा हुआ वह भी मुट्ठियाँ तानकर I बड़े फूल ने उससे टकराना बंद कर दिया पर छोटे की तरफ हाथ बढ़ाने से बाज न आया I वह तो चाहता था मझला फूल अकेला पड़ जाये ,घुटन -तड़पन उसे अवसाद में डुबो दे I मझला फूल सँभल गया था I उसने कुचली उदात्त भावनाओं को जड़ों से उखाड़ फेंका मगर अपनी जड़ों की खुशबू वह जीवन भर तलाशता रहा I
* * * *
12 मार्च 2010
डॉ0 अनिल चड्डा की रचना - ख़ुदा कभी तो नीचे झाँकता होगा
ख़ुदा कभी तो नीचे झाँकता होगा
ख़ुदा कभी तो नीचे झाँकता होगा,
हमारी हरकतों को आँकता होगा ।
बिक रहा गली-कूचों में नाम जिसका,
वो अपना हिस्सा भी तो माँगता होगा ।
चल दिये भेड़-चाल गुरू-चेलों के पीछे,
न मालूम कौन उनको हाँकता होगा ।
दायरे में रहने को जो हैं कहा करते,
सबसे पहले वो दायरा लाँधता होगा ।
जिनसे उम्मीद न हो छलावे की,
सूली पर वो ही तो टाँगता होगा ।
--
डा0अनिल चड्डा,
उप-सचिव,
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय,
सरदार पटेल भवन, नई दिल्ली
09868909673
http://vahak.hindyugm.com/
( कृपया मेरे ब्लाग -
http://anilchadah.blogspot.com
एवँ
http://anubhutiyan.blogspot.
का भी अवलोकन करें )
09 मार्च 2010
राम निवास 'इंडिया' की रचना -- नारी दोहा दशक
नारी दोहा दशक
जख्मों के अम्बार को उर में रखे छुपाय
पीड़ा-दर-पीड़ा सहे कभी ना बोले हायII
पीड़ा-दर-पीड़ा सहे कभी ना बोले हायII
नारी एक पतंग सी पति के हाथों डोर
उड़ना तो यह चाहती ढील पड़े कमजोरII
उड़ना तो यह चाहती ढील पड़े कमजोरII
पर-कतरों के बीच में चिड़िया नारी जान
पुरुषों के संसर्ग से जाती भूल उड़ानII
पुरुषों के संसर्ग से जाती भूल उड़ानII
नारी नर का सार है और जगत में प्यार
इसके बिन निर्मूल है यह जीवन बेकारII
इसके बिन निर्मूल है यह जीवन बेकारII
नारी का ही नाम है माता नाम महान
नारी का अपमान है ममता का अपमानII
नारी का अपमान है ममता का अपमानII
नारी सागर की तरह रत्नों का भण्डार
गहराई इसकी कभी ना जाना संसारII
गहराई इसकी कभी ना जाना संसारII
ममता का एक रूप है कर इसका सम्मान
नारी के ही गोद में खेले हैं भगवान्II
नारी के ही गोद में खेले हैं भगवान्II
अनसुइया सीता बने बने तो स्त्री महान
बिगड़े तो इसके लिए कोई नहीं प्रमाणII
बिगड़े तो इसके लिए कोई नहीं प्रमाणII
नर प्रधान यह देश है नारी का ना मान
संसाधन बस काम का पाए ना सम्मानII
संसाधन बस काम का पाए ना सम्मानII
नारी त्याग स्वरुप रही पुरुष रहा अनजानI
सदिओं से बनता रहा पुरुष सदा बलवानII
सदिओं से बनता रहा पुरुष सदा बलवानII
===========================
राम निवास 'इंडिया'
गीतकार ,
342-A, जोशी रोड, करोलबाग
नई दिल्ली -110005
342-A, जोशी रोड, करोलबाग
नई दिल्ली -110005
09971643847
लेबल:
कविता,
राम निवास 'इंडिया'
08 मार्च 2010
गीतिका: भुज पाशों में कसता क्या है? --संजीव 'सलिल
गीतिका
संजीव 'सलिल'
भुज पाशों में कसता क्या है?
अंतर्मन में बसता क्या है?
जितना चाहा फेंक निकालूँ
उतना भीतर धँसता क्या है?
ऊपर से तो ठीक-ठाक है
भीतर-भीतर रिसता क्या है?
दिल ही दिल में रो लेता है.
फिर होठों से हँसता क्या है?
दाने हुए नसीब न जिनको
उनके घर में पिसता क्या है?
'सलिल' न पाई खलिश अगर तो
क्यों है मौन?, सिसकता क्या है?
*************************
संजीव 'सलिल'
भुज पाशों में कसता क्या है?
अंतर्मन में बसता क्या है?
जितना चाहा फेंक निकालूँ
उतना भीतर धँसता क्या है?
ऊपर से तो ठीक-ठाक है
भीतर-भीतर रिसता क्या है?
दिल ही दिल में रो लेता है.
फिर होठों से हँसता क्या है?
दाने हुए नसीब न जिनको
उनके घर में पिसता क्या है?
'सलिल' न पाई खलिश अगर तो
क्यों है मौन?, सिसकता क्या है?
*************************
07 मार्च 2010
डॉ0 अनिल चड्डा का गीत - जीवन भर की यादें
"गीत"
चार दिन का साथ मिला, जीवन भर की यादें,
रफ्ता-रफ्ता दिन कटें, मुश्किल हो गईं रातें ।
आँसू की बरसात बही, भाव घनाघन उमड़े,
जीवन-ज्योति बुझ सी गई, कौन सी राह मन पकड़े,
सोच-सोच मन बैठा जाये, बरबस निकलें आहें ।
दीप जलाऊँ फिर भी अंधेरा, कारण कैसे जानूँ,
द्वार पे दिल के तुम आये हो, कैसे मैं ये मानूँ,
भूल ना पाऊँ, याद क्यों आयें मुड़-मुड़ वोही बातें ।
--
डा0अनिल चड्डा,
उप-सचिव,
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय,
सरदार पटेल भवन, नई दिल्ली
०९८६८९०९६७३
http://vahak.hindyugm.com/
( कृपया मेरे ब्लाग -
http://anilchadah.blogspot.com एवँ
http://anubhutiyan.blogspot.
- का भी अवलोकन करें )
06 मार्च 2010
गीत : किस तरह आये बसंत?... --संजीव 'सलिल'
गीत :
किस तरह आये बसंत?...
मानव लूट रहा प्रकृति को
किस तरह आये बसंत?...
*
होरी कैसे छाये टपरिया?,
धनिया कैसे भरे गगरिया?
गाँव लीलकर हँसे नगरिया.
राजमार्ग बन गयी डगरिया.
राधा को छल रहा सँवरिया.
अंतर्मन रो रहा निरंतर
किस तरह गाये बसंत?...
*
बैला-बछिया कहाँ चरायें?
सूखी नदिया कहाँ नहायें?
शेखू-जुम्मन हैं भरमाये.
तकें सियासत चुप मुँह बाये.
खुद से खुद ही हैं शरमाये.
जड़विहीन सूखा पलाश लख
किस तरह भाये बसंत?...
*
नेह नरमदा सूखी-सूनी.
तीन-पाँच करते दो दूनी.
टूटी बागड़ ग़ायब थूनी.
ना कपास, तकली ना पूनी.
वैश्विकता की दाढ़ें खूनी.
खुशी बिदा हो गयी'सलिल'चुप
किस तरह लाये बसंत?...
*
किस तरह आये बसंत?...
मानव लूट रहा प्रकृति को
किस तरह आये बसंत?...
*
होरी कैसे छाये टपरिया?,
धनिया कैसे भरे गगरिया?
गाँव लीलकर हँसे नगरिया.
राजमार्ग बन गयी डगरिया.
राधा को छल रहा सँवरिया.
अंतर्मन रो रहा निरंतर
किस तरह गाये बसंत?...
*
बैला-बछिया कहाँ चरायें?
सूखी नदिया कहाँ नहायें?
शेखू-जुम्मन हैं भरमाये.
तकें सियासत चुप मुँह बाये.
खुद से खुद ही हैं शरमाये.
जड़विहीन सूखा पलाश लख
किस तरह भाये बसंत?...
*
नेह नरमदा सूखी-सूनी.
तीन-पाँच करते दो दूनी.
टूटी बागड़ ग़ायब थूनी.
ना कपास, तकली ना पूनी.
वैश्विकता की दाढ़ें खूनी.
खुशी बिदा हो गयी'सलिल'चुप
किस तरह लाये बसंत?...
*
05 मार्च 2010
<>जनमत: हिन्दी भारत की राष्ट्र भाषा है या राज भाषा?<>
जनमत: हिन्दी भारत की राष्ट्र भाषा है या राज भाषा?
सोचिये और अपना मत बताइए:
आप की सोच के अनुसार हिन्दी भारत की राष्ट्र भाषा है या राज भाषा?
क्या आम मानते हैं कि हिन्दी भविष्य की विश्व भाषा है?
क्या संस्कृत और हिन्दी के अलावा अन्य किसी भाषा में अक्षरों का उच्चारण ध्वनि विज्ञानं के नियमों के अनुसार किया जाता है?
अक्षर के उच्चारण और लिपि में लेखन में साम्य किन भाषाओँ में है?
अमेरिका के राष्ट्रपति अमेरिकियों को बार-बार हिन्दी सीखने के लिए क्यों प्रेरित कर रहे हैं?
अन्य सौरमंडलों में संभावित सभ्यताओं से संपर्क हेतु विश्व की समस्त भाषाओँ को परखे जाने पर संस्कृत और हिन्दी सर्वश्रेष्ठ पाई गयीं हैं तो भारत में इनके प्रति उदासीनता क्यों?
क्या भारत में अंग्रेजी के प्रति अंध-मोह का कारण उसका विदेशी शासन कर्ताओं से जुड़ा होना नहीं है?
Acharya Sanjiv सलिल / http://divyanarmada.blogspot.com
सोचिये और अपना मत बताइए:
आप की सोच के अनुसार हिन्दी भारत की राष्ट्र भाषा है या राज भाषा?
क्या आम मानते हैं कि हिन्दी भविष्य की विश्व भाषा है?
क्या संस्कृत और हिन्दी के अलावा अन्य किसी भाषा में अक्षरों का उच्चारण ध्वनि विज्ञानं के नियमों के अनुसार किया जाता है?
अक्षर के उच्चारण और लिपि में लेखन में साम्य किन भाषाओँ में है?
अमेरिका के राष्ट्रपति अमेरिकियों को बार-बार हिन्दी सीखने के लिए क्यों प्रेरित कर रहे हैं?
अन्य सौरमंडलों में संभावित सभ्यताओं से संपर्क हेतु विश्व की समस्त भाषाओँ को परखे जाने पर संस्कृत और हिन्दी सर्वश्रेष्ठ पाई गयीं हैं तो भारत में इनके प्रति उदासीनता क्यों?
क्या भारत में अंग्रेजी के प्रति अंध-मोह का कारण उसका विदेशी शासन कर्ताओं से जुड़ा होना नहीं है?
Acharya Sanjiv सलिल / http://divyanarmada.blogspot.com
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