tag:blogger.com,1999:blog-5251303885852162565.post3778335585563181274..comments2023-10-25T17:18:11.112+05:30Comments on शब्दकार: आफरीन खान की दो कवितायेंशब्दकार-डॉo कुमारेन्द्र सिंह सेंगरhttp://www.blogger.com/profile/12857188651209037475noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-5251303885852162565.post-44593633616755147992010-05-18T23:31:34.092+05:302010-05-18T23:31:34.092+05:30बस्तर के जंगलों में नक्सलियों द्वारा निर्दोष पुलिस...बस्तर के जंगलों में नक्सलियों द्वारा निर्दोष पुलिस के जवानों के नरसंहार पर कवि की संवेदना व पीड़ा उभरकर सामने आई है |<br /><br />बस्तर की कोयल रोई क्यों ?<br />अपने कोयल होने पर, अपनी कूह-कूह पर<br />बस्तर की कोयल होने पर<br /><br />सनसनाते पेड़<br />झुरझुराती टहनियां<br />सरसराते पत्ते<br />घने, कुंआरे जंगल,<br />पेड़, वृक्ष, पत्तियां<br />टहनियां सब जड़ हैं,<br />सब शांत हैं, बेहद शर्मसार है |<br /><br />बारूद की गंध से, नक्सली आतंक से<br />पेड़ों की आपस में बातचीत बंद है,<br />पत्तियां की फुस-फुसाहट भी शायद,<br />तड़तड़ाहट से बंदूकों की<br />चिड़ियों की चहचहाट<br />कौओं की कांव कांव,<br />मुर्गों की बांग,<br />शेर की पदचाप,<br />बंदरों की उछलकूद<br />हिरणों की कुलांचे,<br />कोयल की कूह-कूह<br />मौन-मौन और सब मौन है<br />निर्मम, अनजान, अजनबी आहट,<br />और अनचाहे सन्नाटे से !<br /><br />आदि बालाओ का प्रेम नृत्य,<br />महुए से पकती, मस्त जिंदगी<br />लांदा पकाती, आदिवासी औरतें,<br />पवित्र मासूम प्रेम का घोटुल,<br />जंगल का भोलापन<br />मुस्कान, चेहरे की हरितिमा,<br />कहां है सब<br /><br />केवल बारूद की गंध,<br />पेड़ पत्ती टहनियाँ<br />सब बारूद के,<br />बारूद से, बारूद के लिए<br />भारी मशीनों की घड़घड़ाहट,<br />भारी, वजनी कदमों की चरमराहट।<br /><br />फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?<br /><br />बस एक बेहद खामोश धमाका,<br />पेड़ों पर फलो की तरह<br />लटके मानव मांस के लोथड़े<br />पत्तियों की जगह पुलिस की वर्दियाँ<br />टहनियों पर चमकते तमगे और मेडल<br />सस्ती जिंदगी, अनजानों पर न्यौछावर<br />मानवीय संवेदनाएं, बारूदी घुएं पर<br />वर्दी, टोपी, राईफल सब पेड़ों पर फंसी<br />ड्राईंग रूम में लगे शौर्य चिन्हों की तरह<br />निःसंग, निःशब्द बेहद संजीदा<br />दर्द से लिपटी मौत,<br />ना दोस्त ना दुश्मन<br />बस देश-सेवा की लगन।<br /><br />विदा प्यारे बस्तर के खामोश जंगल, अलिवदा<br />आज फिर बस्तर की कोयल रोई,<br />अपने अजीज मासूमों की शहादत पर,<br />बस्तर के जंगल के शर्मसार होने पर<br />अपने कोयल होने पर,<br />अपनी कूह-कूह पर<br />बस्तर की कोयल होने पर<br />आज फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?<br /><br />अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार, कवि संजीव ठाकुर की कलम सेUnknownhttps://www.blogger.com/profile/06416954992294116922noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5251303885852162565.post-90622042991807811172009-04-02T16:23:00.000+05:302009-04-02T16:23:00.000+05:30इस कीमती माल के बदलेआँसू और आहें ही कमाते है। yaqe...इस कीमती माल के बदले<BR/>आँसू और आहें ही कमाते है।<BR/> yaqeenan waqt ki har shai gulaam hoti hai..<BR/><BR/>badhai ho ek achhi nazm padhne ko mili....<BR/>shahid "ajnabi"Shahid Ajnabihttps://www.blogger.com/profile/09637472409063584855noreply@blogger.com