27 मार्च 2011

क्या देखे यही सपने?

एक प्रश्न करती है
मुझसे मेरी आत्मा

क्या ऐसे ही जीवन की

की थी तुमने कल्पना?

सोच में पड़ गयी

समझ न पाई
न जाना
बचपन में खेले पढ़े
और देखे सपने

पर क्या हुए वे अपने?

बड़े हुए फिर चाहा

और बड़े बन जाना

पर सच्चे पथ से डिगने को

अपना मन न माना

देखा जब पीछे मुड़कर

ठिठके हम खड़े थे

उन्नति पथ पर
आगे को
हम तो नहीं बढे थे.

24 मार्च 2011

अब अगर जो वो रास्ते में आ जाए !!

य काफिया और रदीफ़ तो हटा दे जाहिद ,ज़रा मेरे हर्फ़ ग़ज़ल में समां जायें !!
जिंदगी का हर लम्हा ही एक मकता है ,हर शै के बाद दूसरी शै ही आ जाए !!
मुश्किलों ने हमसे कर ली है अब तौबा, अब अगर जो वो रास्ते में आ जाए !!
उम्र को ही पैराहन की तरह ओढ़ा हुआ है,मौत जब आए,इसी में समां जाए !!
अब तो तू ही तू नज़र आता है यारब,जहाँ में जहाँ-जहाँ तक मेरी नज़र जाए !!
हम हर्फ़ को ही खुदा समझाते हैं यारा,हर हर्फ़ की ही जद में खुदा आ जाए !!
इक जरा मन को कडा कर लीजिये ,हर फिक्र धूल में उड़ती ही नज़र आए !!
इतनी कड़ी निगाहों से ना देखिये हमें,कहीं खुदा ही घबरा कर ना आ जाए !!
दुनिया में रसूख उसी का होता है,जिसे,रसूख की फिक्र कभी भी ना सताए !!
सिर्फ़ मुहब्बत का भूखा हूँ"गाफिल",प्यार से मुझे कोई कुछ भी खिला जाए !!