तेवरी
संजीव 'सलिल'
नफरत की भट्टी में सुलग रहा देश.
कलियाँ नुचवाता दे माली आदेश..
सेना में नेता-सुत एक भी नहीं.
पढिये, क्या छिपा हुआ इसमें संदेश?.
लोकतंत्र पर हावी लोभतंत्र है.
लेन-देन में आती शर्म नहीं लेश..
द्रौपदी-दुशासन ने मिला लिये हाथ.
धर्मराज के खींचें दोनों मिल केश.
'मावस अनमोल हुई, पूनम बेदाम..
निशा उषा संध्या को ठगता राकेश..
हूटर मदमस्त, पस्त श्रमिक हैं हताश.
खरा त्याज्य, है वरेण्य खोता परिवेश..
पूज रहा सत्य को असत्य आचरण.
नर ने नारायण को 'सलिल' दिया क्लेश..
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