समझदारी /सुधा भार्गव 
चचा -भतीजे  अकसर फ़ोन  पर  बातें  किया  करते  | आज  भी   उनका वार्तालाप  चल  रहा  था  |
--किसनिया ,तुम्हारे  बाप  की  तबियत  ठीक नहीं  है |मेरी  बूढ़ी  शिराओं  में  भी  इतनी  ताकत  नहीं बची कि  उनके  चार  काम  कर  सकूँ |कुछ  दिन  के  लिए  यहाँ  आकर   सेवा  का  पुण्य  कमा लो |
--चचा दो  माह  बाद  गर्मियों  की  छुट्टियों में  तो  आना ही    है |अभी  आऊँ  फिर  दुबारा  आऊँ  कुछ  जँचता  नहीं | समय  की  भी  बर्बादी  और  पैसे  की  भी |
--तुम्हारी  समझ  को  क्या  कहूँ ! बचकाना  या  बेमुरब्बत  |पैसे  की  तो  कोई  कमी  नहीं  फिर  बाप की  जायदाद भी  तुम्हारे  हाथों  लगेगी  |
--तभी   तो  मुझे और  भी  ज्यादा  देखभाल  के   कदम  उठाना  है  वरना  दुनिया  कहेगी - बाप  की कमाई  बेटा  उड़ा  रहा  है |
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1 टिप्पणी:
saarthk pryaas...achchhi soch ka parichy diya hai. meri shubhkamnaye....
Visi-www.rajeevmatwala.wordpress.com
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