30 जून 2009

डॉ0 अनिल चड्डा की ग़ज़ल - मेहमान उनको हमने बना लिया !


दोस्ताना क्या हमने दिखा दिया,
दुश्मन अपना उन्हें बना लिया !

तरस क्या खायें उस पर हम,
खुद को तमाशा जिसने बना लिया !

आईना तो झूठ कहता नहीं,
अक्स ही झूठा उसने बना लिया !

दर्द को और काँटे चुभाना नहीं,
दिल में घर उसने अपना बना लिया !

शाम को फिर मुलाकात हो न हो,
मेहमान उनको हमने बना लिया !

-- डा0अनिल चड्डा
http://anilchadah.blogspot.com
http://anubhutiyan।blogspot.com
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2 टिप्‍पणियां:

Sajal Ehsaas ने कहा…

mazaa aaya padhkar...

वीनस केसरी ने कहा…

कुमारेन्द्र जी और किसी का तो नहीं जनता मगर मुझे ये गजल इस स्तर की नहीं लगी की आप अपने ब्लॉग पर पोस्ट करे
सीधी सी बात है गजलकार मतले में ही रदीफ़ का निर्वहन नहीं कर पाया यही बात बिगड़ गई जो अंत तक सुधर नहीं पाई
कुछ अच्छा पढने के इंतज़ार में
वीनस केसरी