07 जुलाई 2009

सुधा भार्गव की दो लघुकथाएं - "देवी" --- "कलाकार"


१.देवी
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गाँव -शहर के लिए वह देवी थी मरते को जिलाती ,जिए को हंसाती ऐसी थी लेडी डाक्टरनी लड़कियाँ उसके सामने शीश झुकातीं ,महिलाएं उसके चरण स्पर्श करतीं लोग जी खोलकर उस पर धन लुटाते उसका काम ही कुछ ऐसा था जो कोई न करे वह कर दे
जिस अस्पताल में वह जनसेवा करती थी उसका निरीक्षण करने के लिए स्वास्थ्य मंत्री आने वाले थे सफाई अभियान जोरों से शुरू हो गया मरीजों की चादरें बदल दी गयी शौचालय झकझक करने लगे नर्सें जरुरत से ज्यादा ही विनम्र हो गयीं जमादार वार्ड नंबर ५ की तरफ झाड़ू लगाने को बढावहां एक युवती गहरी नींद में सो रही थी \उसके बिस्तर के समीप स्टूल पर एक आया उसकी देखरेख के लिए बैठी थी इतने में जमादार ने बिस्तर के पास कपड़े से ढकी एक डलिया की ओर इशारा करते हुए पूछा --"इसे ले जाऊँ "?आया ने पैर से नीचे कुछ टटोला और धीमे से बोली --"मूर्ख ,इसे मरने तो दे "
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२ कलाकार
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"मैंने ५फ़ुट लम्बी ,५फ़ुट चौड़ी पेंटिंग बनाई है तुम देखकर बहुत खुश होगी "ज़रुर देखना चाहूँगी मीना ,बोलो कब आऊं "
"मैं फोन कर दूंगी "
"तुमने तो गणेश जी की पेंटिंग बनाई है क्यों न छोटी सी पूजा रख लें ,इससे तुम्हारे कलाकार होने का अच्छा प्रचार भी हो जायेगा "
"बात तो तुमने पते की बताई है नीना "
"मेरे चमचे भी तैयार हैं तालियाँ पीटने और भाषण बाजी के लिए फूलों की एक माला खरीदने की देरी है तुम्हें तो बस इतना बताना है वह माला गणेश जी के गले में डालनी है या तुम्हारे गले में "
"अपने गले में डाल लेना सफलता का श्रेय आजकल मीडिया को जाता है "
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सुधा भार्गव
जे -703 इस्प्रिंग फील्ड,
#17/20, अम्बालीपुरा विलेज,
बेलेंदुर गेट, सरजापुर रोड,
बंगलौर-560102

1 टिप्पणी:

kshitij ने कहा…

अच्छी कोशिश....शब्दों का अच्छा संयोजन...क्या कहने