13 जुलाई 2009

सुधा भार्गव की दो लघुकथाएं - "ओल्ड एज होम" तथा "लक्ष्मी पुराण"


1 ओल्ड ऐज होम
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दो वृद्ध फुसफुसा रहे थे !लगा ऐसा मानो अपना ब्लड प्रेशर नाप रहे हों !"कल ओल्ड एज होम का उदघाटन हुआ था !वहां मैं गया !लेकिन उसके बाहर कुत्ते बिल्ले ही नजर आ रहे थे !तुम्हें तो मालूम है मुझे किस तरह कुत्तों से डर लगता है !सो उल्टे पैर भाग आया !"
"दुबारा जाओगे तो वे अन्दर आराम करते नजर आयेंगे और तुम चौखट से सिर टकराकर पुनः लोट आओगे !
"मगर क्यों ?"
"क्योंकि वह वृद्ध पशुओं की देखभाल के लिए है !"
"हमारे लिए तो कोई व्यवस्था है नहीं !यह नया चक्कर और शुरू हो गया !"
"भैया जमाना बदल रहा है ,मिजाज का मौसम बदल रहा है !अब चर्चा के विषय होंगे पशु प्रेम ,पशु सौन्दर्य ,पशु जीवन का मूल्यांकन !यही नहीं अपितु जानवर इंसान की मौत मरेंगे ,और इंसान कुत्ते -बिल्ली की !"
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2 लक्ष्मी पुराण
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डायेरेक्टर्स बोर्ड की आज मीटिंग है !उनका अगले वर्ष के लिए चुनाव होगा !तुम्हे भी मीटिंग में चलाना होगा !"
"मैं क्या करूंगी जाकर ?"
"तुम्हारा वोट बहत कीमती है !आपात कालीन स्थिति में उसका प्रयोग होगा !मेरे विपक्षी को हराने के काम आएगा !"
"आपका विपक्षी कौन है "!
"वही मेरा सौतेला ,जानी दुश्मन !"
"गोद देंने से क्या सौतेला हो गया !"
कुछ करने से पहले अच्छी तरह सोच लो वर्ना जान लेवा जख्म जीना मुश्किल कर देंगे !मुझे भाई -भाई के झगडे में क्यों घसीटते हो ,!मेरी चचेरी बहन उनको ब्याही है !हमने हमेशा अपनी को सगी बहनें समझा !मेरा यह रिश्ता हमशा को चटक जायेगा फिर क्या जुडानहो पायेगी !मैं कैसे आई दरार को पाट पाऊँगी!दुनिया क्या कहेगी !"
"तुमने मेरी बात नहीं मानी तो मैं नाराज हो जाऊँगा !मगर तुम ऐसा करोगी नहीं !तुम मेरी अर्धागिनी हो ,गृह लक्ष्मी हो !यदि मैं जीत गया तो फैक्ट्री का मालिक बन जाऊँगा !दुश्मन के बदले जिसे डायरेक्टर बनाऊंगा वह तो मेरी उँगलियों पर नाचे गा !"
"वह कौन गुलाम है ?"
"तुम्हारा भाई !दो साल की ही तो बात है तुम्हारा बेटा पढ़कर आ जायेगा !उसे तुम्हारे भाईजान के बदले डायरेक्टर बना दूंगा !पुरी फैक्ट्री पर मालिकाना हक़ मेरा होगा !बाहर वालों को एक एक करके आउट कर दूँगा "उनके शेयर्स ज्यादा दाम देकर खरीद लूँगा !"
"आपका इन बातों में बड़ा दिमाग चलता है !"
" एक सच्चा व्यापारी होने के नाते मुझे गणेश की तरह दूर दर्शी और समझदार होना चाहिए !"
'वह कैसे ?'
'हाथी की सूढ् की तरह सूंघकर व्यापारी को दूर से ही भांप लेना चाहिए कि आसपास कोई खतरा तो नहीं मंडरा रहा !उसकी निगाहों की तरह नजर में पैना पन हो जिससे सूक्ष्म से सूक्ष्म कोना छिपा न रहे !हाथी की तरह उसके कान बड़े और पेट मोटा होना चाहिए ताकि खुद तो जरा सी खुसर -पुसर सुन ले लकिन अपनेभेद पेट में छिपाए रहे !और बताऊँ ------दिमाग इतना तेज हो कि दूसरों के मन की बात उगलवाले !चालें ऐसी आड़ी-तिरछी चले कि बहुत से विभीषन ,जयचंद उससे आकर मिल जाएँ !भई ,मैं तो इन्ही राहों का मुसाफिरहूँ !"
"बंद कीजिये अपना यह गणेश पुराण !"
"हाँ ,वोट देने के साथ- साथ मेरे बैरी के खिलाप बोलोगी भी !"
"उसे अपमानित करके अपने मन की भंडास निकालूँगा !"
"यह मुझसे नहीं होगा !"
"एक बार ,मेरी रानी बात मान लो फिर जीवन भर तुम्हारे चरणों में पड़ा रहूँगा !विष्णु भगवान् के लक्ष्मी पैर दबाती हैं पर मैं आजन्म तूम्हारे पैर दबाऊंगा और लक्ष्मी पुराण पढ़ता रहूँगा !"
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सुधा भार्गव
जे -703 इस्प्रिंग फील्ड,
#17/20, अम्बालीपुरा विलेज,
बेलेंदुर गेट, सरजापुर रोड,
बंगलौर-560102

2 टिप्‍पणियां:

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

आपकी दोनों रचनायें बहुत अच्छी लगी,
पहली रचना, आज की स्तिथि को दर्शाती है, सही और सटीक चित्रण किया है आपने,
यही हो रहा है, "जानवर इंसान की मौत मरेंगे ,और इंसान कुत्ते -बिल्ली की !"
बहुत ही अच्छा लगा पढ़ कर,
लिखती रहे, ऐसे ही, हमेशा......

Divya Narmada ने कहा…

यथार्थवादी लघुकथाएं