12 सितंबर 2009

सुरेन्द्र अग्निहोत्री की तीन कवितायें


(1)
युद्धरत आदमी
कल के लिए
प्रतीक्षारत...........
मोक्ष की नहीं दरकार
फटती धरती हो रही हाहाकार
आदमी-आदमी को नहीं करना प्यार
परत-दर-परत खुलता चेहरा
निकला गूंगा और बहरा
समय ने बिठा दिया पहरा
युद्धरत आदमी
विस्मृत स्मृति के लिए
यन्त्रवत...........
सूरज दमकेगा
जंगल चहकेगा
दिल बहकेगा
हवाओं ने नहीं बजाया सितार
टूट गई कल-कल करती नदियों की धार
इन्द्रधनुषी सपनों का उजड़ गया संसार।
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(2)
सरकार को भूल जाइए
और उसके कारिन्दो को
सुनने में यह जितना आसान लगता है,
उतना है नहीं
लेकिन यह बात मैंने,
वेबजह ही कहीं नहीं
साठ साल में जब मिला नहीं अधिकार
नहीं हो सका व्यवस्था में सुधार
तो कब तक प्रतीक्षा करते रहोगे
खुद करो अपनी समस्या का समाधान
आक्रोश की शक्ति को करो एकत्र
बदल दो तदबीर से तकदीर
दलाली के नये चरागाहों में
दर्ज राजपथ के दावेदार
पहले लोक के लिए होते थे
लेकिन अब उन पर
तन्त्र हावी हो गया है
अब उनकी निगाहे देखती नहीं
उन्हें दिखाया जाता है
जैसे एक आख दूसरी से रहती बेखबर
ठीक उसी तरह वे रहते है वेखबर
सरकारी गौमाताऐं बिसुखी पड़ी है
लात मारती है दूध देती नहीं।
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(3)
सियासत
सियासत में हो गया
चापलूसो का बोलबाला
मानवीय संवेदनाओं को
नहीं कोई पूछने वाला
आतंकी विस्फोट में
पैर गंवाने वाले को मिलते पांच लाख
और सरकारी बस से मौत होने पर
मिलता है एक लाख!
मौत और दुर्घटना में भी
हो रही है सौदेबाजी
अगर शिकार बनना ही है तो
लोग करे प्रकृति से प्रार्थना
मुझे दुर्घटना का शिकार बनाते वक्त मेरे खाते में
इतना जरूर लिख देना
जो भी बुरा हो वह विस्फोट में हो
नहीं तो सियासत की भेंट चढ़ जाएंगे
मौत पर कम
दुर्घटना पर अधिक मुआवजा पांएगे।

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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
‘राजसदन’ 120/132 बेलदारी लेन,
लालबाग, लखनऊ।
मो. 9415508695


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