उ ० प्र ० के जनपद जालौन के मुख्यालय उरई में दयानंद वैदिक स्ना० महाविद्यालय के सभागार में 'गाँधी जयंती' के अवसर पर INTACH के उरई अध्याय के द्वारा गाँधी जी के जीवन एवं कार्यों से सम्बंधित चित्रों की एक दुर्लभ प्रदर्शनी लगाई गई जिसका उदघाटन INTACH के प्रदेशीय महामंत्री श्री भार्गव जी ने किया । बुंदेलखंड संग्रहालय ,उरई के निदेशक एवं INTACH उरई के संयोजक डा ० हरी मोहन पुरवार की इस प्रदर्शनी के आयोजन में विशेष भूमिका रही। सह संयोजक डा ० राम किशोर पहारिया का भी महत्वपूर्ण सहयोग रहा ।
प्रदर्शनी में 'बुन्देली लोकगीतों में महात्मा गाँधी ' वीथिका का दिग्दर्शन कराया गया ,जिसकी कुछ बानगी निम्नाकित है -
जात -पांत तोड़ कर देसी बनादव ,डरखों भगाई सरकारी ;
कर कर सत्याग्रह लड़ी रे लडाई ,राजपाट छीनों दे तारी ;
गाँधी जी को मानौ औतार ,जे हैं सत्य अहिंसा के पुजारी।
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बारे का बूढे बना दए सिपाईआ ,औरत संग मरद सजाए देसी गाँधी ने ।
तोपें चलीं, न लागी बंदूकें , सत्याग्रह से जीती लडाई , देसी गाँधी ने ।
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ऐसो जोगी न देखो यार ,जैसो भयो कलयुग में गाँधी ।
अंग्रेजन के राज उड़ा दये ,ऐसी हटी गाँधी की आँधी।
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करनी मोहन हो कथनी कहाँ लो होई ,
मोहन भये कलिकाल में,इधर गाँधी अवतार रे;
गाँधी हते सो मर गए ,देस विदेसन नाम,
हत्यारों मराठा गोडसे ,,जी ने लै लाये प्राण रे;
गाँधी जी के हो गये नाम ,जैसे भये राम,कृष्ण के ;
गाँधी जी को दओ सम्मान ,देस ने राष्ट्रपिता कह के ।
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चना जोर गरम बाबू ,मै लाया मजेदार ,चना जोर गरम ।
चना जो गाँधी जी ने खाया ,जा के डांडी नमक बनाया;
सत्याग्रह संग्राम चलाया , चना जोर गरम।
तुम भी चना चबेना खाओ ,खा के गाँधी जी बन जाओ ;
अंग्रेजों को मार भगाओ, चना जोर गरम ।
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गाँधी बब्बा तारनहार ।
चरखा चला -चला के तुमने ,
चला दई सुदेसी बयार।
गाँधी बब्बा तारनहार ।
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(सहयोग - डा ० मनोज श्रीवास्तव )
1 टिप्पणी:
यह सत्य है कि जो लोक गीतों मे आ गया वह अमर हो गया ।
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