भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और गाँधी जी के विचारों को सर्वाधिक रूप से अपने जीवन उतारने वाले शायद इकलौते राजनेता लाल बहादुर शास्त्री का भी जन्म दिवस हम सभी २ अक्टूबर को मनाते हैं।
शास्त्री जी का जीवन त्याग एवं सादगी की जीवंत मिसाल था। उन्होंने उस विषम समय में देश का नेतृत्त्व किया जब चीन से भारत की पराजय के बाद विश्व में नेहरू जी का आभामंडल तिरोहित हो चुका था । शायद यही सदमा नेहरू की मृत्यु का कारण बना । उस समय सेना का मनोबल क्षीण था । पाकिस्तान अपने अमेरिकी आका की सैनिक सहायता व शह पा कर भारत को आँखें दिखा रहा था । देश में भीषण खाद्यान्न संकट था। भारत की गुटनिरपेक्षता नीति की कटु आलोचना देश के अन्दर हो रही थी।
ऐसी विपरीत परिस्थितियों में शास्त्री जी ने देश को जो दिशा दी ,वह इतिहास में अविस्मर्णीय है। उन्होंने देश के आर्थिक परिवेश को मजबूत बनाने के लिए जहाँ 'जय किसान ' का नारा दिया ,वहीं सुरक्षा बलों के मनोबल को शिखर पर पहुँचाने के लिए 'जय जवान ' का उदघोष किया । इसका परिणाम १९६५ के भारत -पाक युद्ध में मिला जब भारतीय सैनिकों के उच्च मनोबल के परिणामस्वरूप स्वदेश में निर्मित जेट विमानों से हमारे वायुसैनिकों ने ध्वनि से भी तेज रफ्तार रखने वाली सैबरजेट विमानों को धूल चटा दी और देसी टैंकों ने अमेरिकों पैटन टैंकों को ध्वस्त कर दिया । वीर हमीद जैसे वीर सपूतों की युग -युग तक अमर रहेगीं। यह सब शास्त्री जी के द्वारा किए प्रयासोंका परिणाम था।
शास्त्री जी की कथनी व करनी में कोई अन्तर नहीं था । देश के विषम खाद्यान्न संकट में उन्होंने आगे बढ़ कर न सप्ताह में एक दिन उपवास रखा । इसका इतना व्यापक प्रभाव पड़ा कि देश लाखों लोगों ने उनका अनुसरण किया। क्या आज की वर्तमान राजनीति में इतने उच्च मनोबल वाला कोई और राजनेता दूर -दूर तक दिखाई देता है ?
१९६५ में पाकिस्तान पर भारत की विजय के बाद भी उनकी विनम्रता में कोई कमी नहीं आयी। नेहरू जी द्वारा प्रतिपादित भारत की गुटनिरपेक्ष नीति को उन्होंने जारी रखा । विश्वशान्ति और संयुक्त राष्ट्र संघ में अपनी आस्था प्रदर्शित करते हुये उन्होंने सोवियत संघ के प्रधान मंत्री कोसीगिन की मध्यस्थता स्वीकार कर पाकिस्तान के साथ 'ताशकंद समझोता' 'किया और ताशकंद में ही उनका निधन हो गया।
शास्त्री जी ने प्रधानमंत्री और राजनेता के रूप में मूल्यों,नैतिकता, ईमानदारी ,त्याग ,प्रशासनिक कुशलता व दृढ़ता के जो प्रतिमान स्थापित किये ,वे दुर्लभ,मार्गदर्शक एवं अनुकरणीय हैं। इसके लिए देश उनका सदैव ऋणी रहेगा।
शास्त्री जी का जीवन त्याग एवं सादगी की जीवंत मिसाल था। उन्होंने उस विषम समय में देश का नेतृत्त्व किया जब चीन से भारत की पराजय के बाद विश्व में नेहरू जी का आभामंडल तिरोहित हो चुका था । शायद यही सदमा नेहरू की मृत्यु का कारण बना । उस समय सेना का मनोबल क्षीण था । पाकिस्तान अपने अमेरिकी आका की सैनिक सहायता व शह पा कर भारत को आँखें दिखा रहा था । देश में भीषण खाद्यान्न संकट था। भारत की गुटनिरपेक्षता नीति की कटु आलोचना देश के अन्दर हो रही थी।
ऐसी विपरीत परिस्थितियों में शास्त्री जी ने देश को जो दिशा दी ,वह इतिहास में अविस्मर्णीय है। उन्होंने देश के आर्थिक परिवेश को मजबूत बनाने के लिए जहाँ 'जय किसान ' का नारा दिया ,वहीं सुरक्षा बलों के मनोबल को शिखर पर पहुँचाने के लिए 'जय जवान ' का उदघोष किया । इसका परिणाम १९६५ के भारत -पाक युद्ध में मिला जब भारतीय सैनिकों के उच्च मनोबल के परिणामस्वरूप स्वदेश में निर्मित जेट विमानों से हमारे वायुसैनिकों ने ध्वनि से भी तेज रफ्तार रखने वाली सैबरजेट विमानों को धूल चटा दी और देसी टैंकों ने अमेरिकों पैटन टैंकों को ध्वस्त कर दिया । वीर हमीद जैसे वीर सपूतों की युग -युग तक अमर रहेगीं। यह सब शास्त्री जी के द्वारा किए प्रयासोंका परिणाम था।
शास्त्री जी की कथनी व करनी में कोई अन्तर नहीं था । देश के विषम खाद्यान्न संकट में उन्होंने आगे बढ़ कर न सप्ताह में एक दिन उपवास रखा । इसका इतना व्यापक प्रभाव पड़ा कि देश लाखों लोगों ने उनका अनुसरण किया। क्या आज की वर्तमान राजनीति में इतने उच्च मनोबल वाला कोई और राजनेता दूर -दूर तक दिखाई देता है ?
१९६५ में पाकिस्तान पर भारत की विजय के बाद भी उनकी विनम्रता में कोई कमी नहीं आयी। नेहरू जी द्वारा प्रतिपादित भारत की गुटनिरपेक्ष नीति को उन्होंने जारी रखा । विश्वशान्ति और संयुक्त राष्ट्र संघ में अपनी आस्था प्रदर्शित करते हुये उन्होंने सोवियत संघ के प्रधान मंत्री कोसीगिन की मध्यस्थता स्वीकार कर पाकिस्तान के साथ 'ताशकंद समझोता' 'किया और ताशकंद में ही उनका निधन हो गया।
शास्त्री जी ने प्रधानमंत्री और राजनेता के रूप में मूल्यों,नैतिकता, ईमानदारी ,त्याग ,प्रशासनिक कुशलता व दृढ़ता के जो प्रतिमान स्थापित किये ,वे दुर्लभ,मार्गदर्शक एवं अनुकरणीय हैं। इसके लिए देश उनका सदैव ऋणी रहेगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें