अर्द्धविक्षिप्त अवस्था में हवस की शिकार
वो सड़क के किनारे पड़ी थी
ठण्डक में ठिठुरते भिखारी के
फटे कपड़ों से वह झांक रही थी
किसी के प्रेम की परिणति बनी
मासूम के साथ नदी में बह रही थी
नई-नवेली दुल्हन को दहेज की खातिर
जलाने को तैयार थी
साम्प्रदायिक दंगों की आग में
वह उन्मादियों का बयान थी
चंद धातु के सिक्कों की खातिर
बिकाऊ ईमान थी
आज मैंने मौत को देखा ।
5 टिप्पणियां:
Marmik drishya kheencha hai aapne........
के.के. साहब, दिल को कचोटती कविता.
के.के. साहब, दिल को कचोटती कविता.
यह सिर्फ कविता नहीं, एक सच्चाई है...बेहद सुन्दर भाव-चित्र...बधाई हो यादव जी.
मार्मिक व सार्थक कविता.
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