05 मई 2009

डा0 जयजयराम आनन्द की कविता - अम्मा बापू का ऋण


अम्मा ने हाथ धरा सर पर
बापू ने चलना सिखलाया
घर से बाहर पाँव हिलाए
भूलभुलैयों ने भरमाया
अपनों को तो जहाँ कहीं भी
बिन पेंदी का लोटा पाया
अम्मा ने ध्यान दिया मुझ पर
बापू जी ने गुर रटवाया
क्रूर काल के हाथों ने जब
जीवन पथ का साथी छीना
दुःख -दरदों के षड्यंत्रों ने
पलपल कासुख चुनचुन बीना
अम्मा ने भार लिया सर पर
बापू ने धीरज बंधवाया
जाते जाते छोड़ गये वे
अजर अमर पद चिन्ह अनूठे
महामंत्र गीता पुराण के
लगते उनके सम्मुख झूठे
मेरा दिल अम्मा के दिल- सा
तन मेरा बापू प्रतिछाया
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डा0 जयजयराम आनन्द
भोपाल

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