20 मई 2009

डॉ0 अनिल चड्डा की कविता - "कौन सुने"


कौन सुने ह्रदय की बात !
सूना दिन, है काली रात !!

क्षोम भरी पाती लिखता हूँ,
बार-बार फिर खुद पढ़ता हूँ,
यूँ ही हो जाती प्रभात !

अधरों पर मुस्कान नहीं है,
अँखियों में उल्लास नहीं है,
कैसी तुमने दी सौगात !

घन-घन-घन घनघोर घटा है,
पर मेरा मन सबसे कटा है,
बेकाबू हो गये हालात !

नभ के तारे बने सखा हैं,
उन्हें ही मेरा हाल दिखा है,
बाकी सबने की है घात !

---------------------
डा0 अनिल चड्डा
ब्लाग -
http://anilchadah.blogspot.com
ब्लाग -
http://anubhutiyan.blogspot.com

कोई टिप्पणी नहीं: