24 अप्रैल 2010

क्यों?

मन की खंडित वीणा के
तारों में स्वर कम्पन क्यों? 
स्वर लहरियां मचल रही,
विरह राग की सरगम क्यों?

कुछ मधुर गीत की आशा में
मिले कटु - तिक्त स्वर क्यों?
टूटी सी लय कुछ बता रही,
अंतर्वेदना मेरे मन की क्यों?

जग तो था ये मनहर बहुत
जहर बुझे वचन फिर क्यों?
स्वयं भू कि सर्वोत्तम कृति,
मानव खो बैठा मानवता क्यों?

किस भुलावे में भटकता रे मन
शून्य  के आयामों तक क्यों?
मिजराब मचलती तारों पर 
फिर नीरव है सारे स्वर क्यों? 

आशा छोडूं जीवन की या
पूंछूं खुद से मैं हूँ जीवित क्यों?
सपना  तो देखा था उपवन का
फिर बेनूर हुआ ये मधुवन क्यों? 

2 टिप्‍पणियां:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

कुछ मधुर गीत की आशा में
मिले कटु - तिक्त स्वर क्यों?
गहन सम्वेदनाओं को व्यक्त करती सुन्दर कविता. लेकिन इतनी निराशा क्यों?

शब्दकार-डॉo कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

आशा छोडूं जीवन की या
पूंछूं खुद से मैं हूँ जीवित क्यों?
सपना तो देखा था उपवन का
फिर बेनूर हुआ ये मधुवन क्यों?
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हम सभी को इनके जवाब खोजना होंगे...
सुन्दर कविता..........
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड