12 अक्तूबर 2009

राकेश अचल की ग़ज़ल - "चेहरा"

चेहरा दिल का हाल बताता रहता है,
कितना है खुशहाल बताता रहता है।

कौन-कौन कोठे पर अबकी जाएगा,
यह सूखे का साल बताता रहता है।

मेरा 'तोता' आशुकला में माहिर है,
जो पूछो तत्काल बताता रहता है।

मुसिफ चुप है, लेकिन अपने चश्मे से,
नोंचेगा क्यों खाल? बताता रहता है।

राजनीति में जहर घोलने वालो को,
कुछ ना कुछ 'भोपाल' बताता रहता है।

क्या तोहफे लेकर आई है बाबुल से,
बेटी का समाज बताता रहता है।

अरबों के मालिक से धेला मांगों तो,
वह खुद को कंगाल बताता रहता है।

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रचनाकार - राकेश अचल

1 टिप्पणी:

आमीन ने कहा…

आपने बहुत अच्छी रचना लिखी है.. आभार

http://dunalee.blogspot.com/