27 जून 2011

माँ जो चाहे तुमसे प्यारे वही काम तुम करना.

जीवन में गर चाहो बढ़ना,

माँ की पूजा करना.

माँ जो चाहे तुमसे प्यारे,

वही काम तुम करना.

माँ के आशीर्वाद को पाकर,

जब तुम कहीं भी जाओगे.

मनमाफिक हो काम तुम्हारा,

खुशियाँ सारी पाओगे.

कोई काम करने से पहले माँ का कहा ही करना,

माँ जो चाहे तुमसे प्यारे वही काम तुम करना.


माँ ने ही सिखलाया हमको,

बड़ों की सेवा करना.

करनी पड़े मदद किसी की,

कभी न पीछे हटना.

करो सहायता यदि किसी की अहम् न इसका करना,

माँ जो चाहे तुमसे प्यारे वही काम तुम करना.

शालिनी कौशिक

19 जून 2011

बापू !! बोल क्या करना है ???


बापू !!हमारी भैंस बगल वाले का खेत चर आई,बोल क्या करना है ?
अबे करना क्या है,डंडा लेकर बगल वाले पर पिल जा,मार डंडा उसके चूतड पर !!
बापू !!तुम्हारे पोते ने सामने वाले की खिड़की का शीशा फोड़ दिया है,क्या करें ?
अबे सामने वाले को बोल शीशा हटाए और टीन लगाए,रोज के झंझंट से निजात पाए !!
और तुम्हारी बहु,ओ बापू,पड़ोस की औरत का माथा फोड़ आई है,बाहर देख उसकी सास आई है !
अबे साले,तेरी माँ को बोल,उस बुढ़िया की भी मूंडी फोड़ दे,जा उसके बाप के हाथ-पैर तोड़ दे !!
बापू !!तेरे बड़े दामाद ने परले तरफ की विधवा का मकान हड़प कर लिया है,वो बाहर रोती है !
अबे उससे कह,काहे बेकार में पल्लू भिगोती है,अबे उसका है ही कौन,चिता में ले जायेगी क्या मकान ??
बापू !!मंझले भाई ने सोसाईटी का पूरा फंड गबन कर लिया है,अब सोसाईटी हल्ला मचा रही है 
अबे सोसाईटी का फंड सोसाईटी का ही है ना,वो मंझले का भी तो हुआ,कह दे समय पर वापस कर देंगे !!
और तेरे छोटके ने तो बापू,पूरे खेलों का पैसा ही हजम कर लिया है,मिडिया में सब छाप रहा है रोज !
अबे चिंता मत कर,दो दिन मिडिया को मिल जाएगी खबर दूसरी,अभी तू ले-देकर मैनेज कर ले उसे !!
बापू छोटे चचा चुनाव में खड़े हो रहें हैं,और उनका रिकार्ड तो मवालियों से भी गया बीता है,कैसे जीतेगा ?
अबे ऐसे लोगों से ही मिडिया डरता है,बाकी का काम तो पैसा ही करता है,जा मिडिया वालों को बुला ला !!
बापू !!तेरा राजा बेटा जो सरकार में मंत्री है,उसने मंत्रालय से हजारों करोड़ डकार लिए,अब जेल जाएगा ??
अबे जेल जाने से वो और बड़ा नेता बन जाएगा,अगली बार वो सीधा मुख्यमंत्री बन कर आयेगा....!!
बापू तेरा साढू,शहर की जमीन जगह-जगह हथिया रहा है,विपक्षी लोग इस मामले को हथियार बना रहा है !
अबे चार विपक्षियों को जमीन दे देगें भीख में,सब चारों खाने चित्त....अबे यहाँ सब लोग लंगटे-भूखे-छिछोरे हैं !!
बापू तेरी एक बहु विपक्षियों के साथ जा मिली है,जिसके पति का पिछले साल देहांत हुआ था....
अबे तो देखता क्या है,जाकर साली चीरहरण कर दे,और बना डाल विपक्षियों के खिलाफ ही मामला....!!
बापू तेरे तो सारे खानदान ने इस देश में घोटाला-ही-घोटाला किया है,किस-किसका जवाब देते फिरे हम ??
अबे इसी तरह सवाल-जवाब करते हुए ही हम संसद तक चला रहे हैं,समय बिता रहे हैं,मौज मना रहें हैं !!
क्या बक रहे हो बापू तुम,दरअसल हम सब मिलकर इस देश को रसातल में ले जा रहें हैं,सबको बहला रहें हैं!!
अबे नहीं बे,परिस्थितियाँ जो जख्म लोगों को देती हैं,हम तो बस उस पर मरहम लगा रहें हैं,पीठ सहला रहें हैं !!
लेकिन बापू !!वो जख्म तो दरअसल तुम लोग हो दे रहे सबको,परिस्थितियों को क्यों दोष देते हो बेकार में ??
देख बे,बेकार में बहस मत कर,अरे बडका ज़रा हमरा तमंचा तो ला,बहुत जबान चलने लगी है ससुरे की...!!
बापू !हम तुम्हारे अपने खून हैं!तुम्हारे वीर्य से जनम लिए हैं,हमहीं को मार दोगे तुम,बापू हो की कसाई हो ??
ससुरा!!अपने बाप का बाप बनता है तुम,हमसे हिसाब माँगता है,जो ६३ सालों में कौनों हमसे नहीं माँगा !!
बापू!!अब समय बदल गया है और जनता गयी है जाग,सबके दिलों में अब सुलग रही आग,कर देगी तुमको राख 
अरे ई का कह रहा है रे बेटवा,अरे मंझला,अरे बडका,अरे मेहमानवा अरे सबके-सब बाहर निकल के तो आवा 
ई भीड़ काहे है भईया....हम कुच्छो नहीं किये हैं भईया...हमरा तो कौनों बैंकवो में खाता नहीं है,हम का खायेंगे !!
अरे हम तो आप ही सबके बीच के हैं भईया....हम का आप ही से धोखा करवाएंगे ??
सच में बबुआ.....हम कुच्छो नहीं किये हैं बबुआ...चाहो तो हमें कोर्ट ले चलो,
सब दूध-का-दूध हो जाएगा और पानी का पानी......!!
(भीड़ से समवेत स्वर उठता है,हथियारों से लैस लोग इस समूचे कुनबे को मार डालते हैं और उनका मकान-दूकान और अन्य सब कुछ तहस-नहस कर देते हैं.....!!)   

18 जून 2011

खुदा करे कि वो इन जैसे लोगों को कभी माफ़ ना करे....!!

             एक बार फिर चारों तरफ बरसात का आलम है.....कुछ लोगों के लिए बेशक यह रोमांचक शमां हो सकता है,किन्तु झारखंड नाम के एक राज्य में यह मौसम इस वक्त एक लोमहर्षक-दर्दनाक-विकराल और दिल को दहला देने वाला दृश्य पैदा कर रहा है....!!कारण पिछले कुछ समय से माननीय हाई-कोर्ट के आदेश से चल रहा अतिक्रमण हटाओ अभियान है....इस गर्मी के मौसम में कड़ी धूप में गरीब-कमजोर-मासूम लोगो को उस सरकारी जमीन से जबरन हटाया जा रहा है,जिसे हर किसी ने कभी अपनी कड़ी मेहनत और दुर्दमनीय संघर्ष से खरीद कर हासिल किया था और तो और,वो तो ये भी नहीं जानते थे कि जिस जमीन को वो सरकारी कारिंदों से सरकारी रेटों पर वाजिब तरह से खरीद कर उस पर अपना आशियाना बना रहें हैं,उस जमीन को बेचने का कोई हक़ उन सरकारी लोगों को नहीं था,और अब जब ये मासूम और गरीब लोग कोर्ट के आदेश से ना सिर्फ सड़क पर आ चुके हैं,बल्कि उस स्लम से इन तरह-तरह के राहत शिविरों में इस बरसात में नालियों-नालों और दूर-दूर से बह कर आती तरह-तरह की गन्दगी में किस तरह की यातना के बीच नरक से भी बदतर जिन्दगी जी रहें हैं,उसे बताया नहीं जा सकता,उसे देखकर ही जाना जा सकता है और अगर किसी के पास संवेदनशील ह्रदय ना भी हो तो भी वो पसीजे बिना नहीं रह सकता और इस वाक्य के आलोक में एक बड़ा ही कठिन और मार्मिक प्रश्न पैदा होता है कि जिन स्थितियों को देख कर हर प्रकार का मनुष्य दहल जाता है,ठीक उन्हीं स्थितियों को देखकर नेता,वकील-जज और पुलिस नाम के मनुष्य देह-धारियों के जेहन में क्यों कुछ नहीं होता...!!??
              सवाल  नंबर एक,नियम किसलिए बनाए जाते हैं ?शायद लोगों के हित के लिए !!मगर हित भी तो उन्हीं का साधा जा सकता है,जो ज़िंदा बचे,जब ज़िंदा ही नहीं रहने दीजिएगा तो हित किसका कीजिएगा....और जो लोग अपनी जान में कानूनी तरीके कानूनन ही जगह-जमीन खरीद कर अपनी- अपनी औकात के अनुसार जीवन-यापन कर रहे थे/हैं!!उनके लिए बिना किसी पुनर्वास की व्यवस्था किये लाखों-लाख लोगों को नियम की बिना पर एकाएक उजाड़ देना,ये किस किस्म धर्म है या जो भी कुछ है??नियम आदमी के लिए हैं या आदमी की जान से भी ऊपर ??
             सवाल नंबर दो,जिन सरकारी कारिदों की वजह से नियम-क़ानून तोड़े जाते हैं,उनमें से भला कितनों को दंड दिया जाता है,और उन्हें दंड दिया जाए या ना दिया जाए,मगर लाखों-लाख लोगों की हजारों या लाख का मकान या हजारों या लाख की संपत्ति जो कुल मिलाकर अरबों की भी ठहर सकती है,क्या वो महज निजी संपत्ति है,वो संपत्ति देश की संपत्ति नहीं है ??क्या गरीब लोगों की मेहनत का धन हराम का होता है,जिसे जब जो चाहे,किसी भी आदेश की बिना पर नष्ट कर दे,वो भी उसे उसका बिना उचित मुआवजा या हर्जाना दिए ??
             सवाल नंबर तीन ,कि लोकतंत्र नाम की इस व्यवस्था में लोक के लिए वोट देने के अलावा इतना स्थान भी नहीं बचा हुआ है कि वो खुद के सड़क पे आ जाने के भय समुहबद्द होकर इस तरह की सरकारी नीतियों का विरोध करें,और इस अहिंसक विरोध का प्रतिकार सरकार नाम की चीज़(अगर वो है कहीं !!)मानवतापूर्ण तरीके से ही करे और चूँकि सरकार का काम एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना भी है अतएव वह लोगों की न्यायसंगत मागों को यथाशीघ्र पूरा करे....!!
            सवाल नंबर चार......क्या यह एक भद्दा मजाक नहीं है कि हजारों करोड़ रुपये तो किसी एक व्यक्ति द्वारा किसी एक क्षण में ही डकार लिए जा सकते हैं,वहीँ लोगों के हितार्थ कुछेक लाख की योजनायें बरसों तक भी पूरी नहीं की जा सकती ??इसका मतलब नेता-मंत्री-अफसर सब-के-सब महज और महज अपने हित मात्र के लिए लोगों का बड़े-से-बड़ा नुक्सान कर सकते हैं,करते हैं,करते रहेंगे,और क्या उनपर कभी कोई अंकुश नहीं लगेगा....!!??
            इस बरसात में पानी की तरह सवालों का सैलाब भी बह रहा है...मगर जवाब देने वाले हराम के धन को चारों ओर से लपेटे-पर-लपेटे जा जा रहें हैं....उन्हें इन सब सवालों से कोई साबका या वास्ता नहीं...ऐसे में आने वाले समय में खुदा भी उनके साथ क्या फैसला करेगा यह कोई नहीं जानता,खुदा के सिवा.....!!.....खुदा करे कि वो इन जैसे लोगों को कभी माफ़ ना करे....!!

08 जून 2011

शोभा रस्तोगी 'शोभा' की दो लघुकथाएं

लघुकथा-१
सबसे सुखी

प्रश्न था - 'सबसे सुखी कौन है?'

'मै'- मेरे पास बैंक बेलेंस है 'घर है ,हर सुविधा है '- एक बोला।
'मै भी , ऊंची पोस्ट व धन के साथ कर भी है'-दूसरे का उत्तर था।

'मै' - एक अन्य व्यक्ति ने कहा तो सब हैरानी से बोले-'तुम ?तुम्हारे पास न धन, न घर। ऐसा कुछ भी नहीं जिसे सुख की श्रेणी में रखा जा सके। फिर तुम सुखी ? कैसे?'

'मै सुख -दुःख मै सम-भाव से रहता हूँ । न ज्यादा सुखी न अधिक दुखी।'

सब अचरज में थे।

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लघुकथा-२
रावण की आत्मा

दशहरे के दिन रावन का पुतला जलने के लिए तैयार था। लोक समूह पुतले के इर्द-गिर्द जमा था।
अग्नि-प्रज्वलन के लिए शहर प्रमुख नेता आमंत्रित थे। नियत समय पर नेता के हाथ में मशाल दी गयी।

ज्यों ही नेता ने मशाल पुतले की तरफ बढ़ाई त्यों ही
रावण की आत्मा ने पुतले में प्रवेश किया। उसने हैरत से नेता को देखा। अपने से बड़ा रावण सामने खड़ा पाया। फिर भीड़ में दृष्टि डाली। अपने से कई गुना बड़े अनेक रावण उसे नज़र आये। घबराकर आँखें मूँद ली। चुपके से पुतले में से निकलने में ही भलाई समझी।

नेता ने पुतले को अग्नि के समर्पित कर दिया।

रचनाकार :---
शोभा रस्तोगी 'शोभा'
पालम कालोनी, नई दिल्ली - ७७

06 जून 2011

लघुकथा



 गुलाम /सुधा भार्गव



मेरे आते  ही तुम सितार वादन लेकर बैठ जाती हो। सुबह का गया शाम को घर आता हूँ । पीछे से इसके लिए समय नहीं मिलता क्या !                        
                                                                                                                   
-सारे दिन बच्चों की खिटपिट.नौकरानी की चखचख ----अभी तो साँस लेने को समय मिला है।
-इस समय तो थोड़ा मेरे पास आ जाओ |
--ओह !क्या चाहिए आपको- - -- --नाश्ता मेज पर रख दिया ,चाय नौकरानी ने बना दी । अब क्या- आपको खिलाऊँ- - - !
--हर्ज क्या है खिलाने में--- तुम्हारे एक स्पर्शमात्र से खाने का स्वाद दुगुना हो जायेगा ।
पल में सारी  थकान मिट जायेगी।
-तुमने तो मुझे गुलाम समझ  रखा है।
-तुम मेरी गुलाम ---न --न --न -----------!
गुलाम तो हुजूर हम हैं  आपके -- सुबह से शाम तक खटते जो हैं ।                                                                          
 खाते  खोलते है तो साझे में ,सारा पैसा होता है आपके हवाले। फिर नाचते है खाली जेब आपके इशारों पर।
अब आप ही  बताइए  कौन किसका गुलाम है- - -  !

विशाल बड़ी अदा से वह सब कुछ कह गया जो उसके दिल में आया  पर उसकी पत्नी उसे दिल से लगा बैठी ।
गुलाम शब्द ने फिर मुड़कर उनके दरवाजे की ओर न देखा |ऐसा भागा -जैसे उसकी चोरी पकड़ ली गई हो
|

* * * * * 

लघुकथा


दुविधा /सुधा भार्गव











एक परी थी। जैसे -जैसे यौवन की दहलीज पर कदम बढ़े  उसकी सुन्दरता बढ़ती गई। रंग -बिरंगे पंख  निकल आये। जिन पर सवार हो वह कल्पना जगत की सैर करना  ज्यादा पसंद करती।

बाहर आने में जरा सी भी देर हो जाती, उसकी माँ  घबरा उठती-- कहीं उसकी बेटी को नजर न लग जाये -कोई उसके पंख मैले न कर दे ।

एक दिन वह बोली -
-मेरी बेटी, तुझ पर बलिहारी जाऊँ ---अब तू बड़ी हो गई है ----घर -बाहर  मक्खियाँ जरूर  भिनभिनाती  होंगी ।
बाहर कोई मक्खी तुझे  तंग करे--- तो तू क्या करेगी?
-करना क्या है चट से मसल दूंगी।
-और अगर घर की  मक्खी  परेशानी का कारण बन जाये तो ----।
माँ के इस प्रश्न ने परी को असमंजस में डाल दिया।
-हकलाते हुए बोली ---साथ -साथ रहते तो अपनापन लगने लगता है। उन्हें कैसे मसलूं -।
-प्रश्न अपने- परायेपन का नहीं हैं !सवाल है अन्दर की मक्खियों से अपनी  रक्षा कैसे की जाय ---?
दुविधा के भार से झुकी आँखें--- ऊपर उठीं ।
-सोचना क्या -----! उनको भी मसलना होगा  कभी- कभी बाहर से ज्यादा खतरनाक इंसानियत का मुखौटा पहने ये - - - -अन्दर की मक्खियाँ होती हैं जिनको पहचानने में अक्सर  नजरें धोखा खा जाती हैं।


माँ का इशारा समझ परी  ने आगे  की ओर उड़ान भरनी शुरू कर दी। दुविधा की केंचुली उसने उतर फेंकी थी ।
* * * * *

01 जून 2011

माँ को शीश नवाना है.


होगा जब भगवान् से मिलना हमें यही तब कहना है,

नमन तुम्हे करने से पहले माँ को शीश नवाना है.


माँ ने ही सिखलाया हमको प्रभु को हर पल याद करो,

मानव जीवन दिया है तुमको इसका धन्यवाद् करो.

माँ से ही जाना है हमने क्या क्या तुमसे कहना है,

नमन तुम्हे करने से पहले माँ को शीश नवाना है.


जीवन की कठिनाइयों को गर तुम्हे पार कर जाना है ,

प्रभु के आगे काम के पहले बाद में सर ये झुकाना है.

शिक्षा माँ की है ये हमको तुमको ही अपनाना है,

नमन तुम्हे करने से पहले माँ को शीश नवाना है.


माँ कहती है एक बार गर प्रभु के प्रिय बन जाओगे,

इस धरती पर चहुँ दिशा में बेटा नाम कमाओगे.

तुमसे मिलवाया है माँ ने इसीलिए ये कहना है,

नमन तुम्हे करने से पहले माँ को शीश नवाना है.

शालिनी कौशिक