12 मार्च 2010

डॉ0 अनिल चड्डा की रचना - ख़ुदा कभी तो नीचे झाँकता होगा

ख़ुदा कभी तो नीचे झाँकता होगा



ख़ुदा कभी तो नीचे झाँकता होगा,


हमारी हरकतों को आँकता होगा ।



बिक रहा गली-कूचों में नाम जिसका,


वो अपना हिस्सा भी तो माँगता होगा ।



चल दिये भेड़-चाल गुरू-चेलों के पीछे,


न मालूम कौन उनको हाँकता होगा ।



दायरे में रहने को जो हैं कहा करते,


सबसे पहले वो दायरा लाँधता होगा ।




जिनसे उम्मीद न हो छलावे की,


सूली पर वो ही तो टाँगता होगा ।



--
डा0अनिल चड्डा,
उप-सचिव,
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय,
सरदार पटेल भवन, नई दिल्ली
09868909673

http://vahak.hindyugm.com/2009/10/anil-chadda.html
( कृपया मेरे ब्लाग -
http://anilchadah.blogspot.com
एवँ
http://anubhutiyan.blogspot.com
का भी अवलोकन करें )

2 टिप्‍पणियां:

shailen ने कहा…

well said chadhha sahab!

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

महोदय !

सामाजिक आधार पर व्याप्त राजनीति का नया संस्करण कालान्तर में ‘धर्म’ के रूप में उदित होता है। ‘ईश्वर’, ’खुदा’, ‘भगवान’ आदि को प्राचीन कालीन राजतीतिज्ञों ने अपनी-अपनी तरह से उपजाया है। ‘ईश्वर’, ’खुदा’, ‘भगवान’ को क्या पड़ी धरती पर पल रहे लफड़ों में टांग अड़ाने की। वह तो अपने एजेन्टों के आदेशनुसार आचरण करता है। कहा भी गया है- ‘भगवान भगत के वश में’। धर्म के स्वयंभू एजेन्ट (जनता द्वारा चुने हुए नहीं) जब चाहेगे ईश्वर हरकत में आएगा है। जब तक आप इंतिजार कीजिए। सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी