"गीत"
चार दिन का साथ मिला, जीवन भर की यादें,
रफ्ता-रफ्ता दिन कटें, मुश्किल हो गईं रातें ।
आँसू की बरसात बही, भाव घनाघन उमड़े,
जीवन-ज्योति बुझ सी गई, कौन सी राह मन पकड़े,
सोच-सोच मन बैठा जाये, बरबस निकलें आहें ।
दीप जलाऊँ फिर भी अंधेरा, कारण कैसे जानूँ,
द्वार पे दिल के तुम आये हो, कैसे मैं ये मानूँ,
भूल ना पाऊँ, याद क्यों आयें मुड़-मुड़ वोही बातें ।
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डा0अनिल चड्डा,
उप-सचिव,
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय,
सरदार पटेल भवन, नई दिल्ली
०९८६८९०९६७३
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( कृपया मेरे ब्लाग -
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