21 मार्च 2010

लघुकथा

पागल /सुधा भार्गव

माली की मेहनत से तीनों फूल खिलखिला पड़े पर एक को अच्छा नहीं लगा I अकड़कर बोला --मैं तुम सबसे बड़ा हूं I मुझसे पूछकर हँसना होगा I फूल जब हँसते बड़े भाई की आज्ञा चाहते ,वह मना कर देता I उनके रास्ते में बड़े -बड़े पत्थर डाल देता I आंधी -तूफान आने पर बार -बार पत्थरों से रगड़ खाकर वे घायल हो जाते I वे हँसना भूल गये I छोटा तो गुस्से में आकर क्यारी ही छोड़ कर अन्यत्र चला गया I

मझले में साहस था , वह सुनता बड़े की मगर करता मन की I वह जानता था अपने स्वार्थ की खातिर बड़ा कुछ भी कहकर उसको अपमानित कर सकता है लेकिन हद से गुजर जायेगा यह उसने कभी सोचा न था I
एक बार उसकी हंसी खुले आकाश के नीचे दूर -दूर तक गूँजती थी I तितलियाँ उसकी सुन्दरता पर मोहित होकर उसके इर्द गिर्द उड़ रही थीं , भोंरों की आवाज कानों में रस घोल रही थी I बड़े फूल की तो भृकुटियाँ तन गईं I उसने निशाना लगाकर मझले पर कंकड़ फेंका | वह डाल से दूर जा छिटका,साथ में पत्तियां भी झरझर हो गईं I वह कराहया,सहारे के लिए फड़ फड़ाया I कोई उस पर हंसा ,किसी ने उसे बेवकूफ कहा I एक शुभ चिन्तक से लगनेवाले ने तो पागल की उपाधि भी दे डाली I घिसटते -घिसटते उसके हाथ कुछ टकराया I उसने उसे थाम लिया I उसका चुकता धैर्य बच गया I रात दिन उसे पकड़ कभी रोता ,कभी दीवार से सिर टकराता --कैसे जीऊंगा,कैसे खिलूँगा ,कैसे अपनों को खिलाऊँगा I उसके साथ उसके साथी भी मुरझा रहे थे I धैर्य ने उसका साथ दिया I उससे मिली ऊर्जा और वह घुटुनों चला ऐसा कि उठ खड़ा हुआ वह भी मुट्ठियाँ तानकर I बड़े फूल ने उससे टकराना बंद कर दिया पर छोटे की तरफ हाथ बढ़ाने से बाज न आया I वह तो चाहता था मझला फूल अकेला पड़ जाये ,घुटन -तड़पन उसे अवसाद में डुबो दे I मझला फूल सँभल गया था I उसने कुचली उदात्त भावनाओं को जड़ों से उखाड़ फेंका मगर अपनी जड़ों की खुशबू वह जीवन भर तलाशता रहा I
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