21 मार्च 2010

लघुकथा -

-नव वर्ष का उपहार /सुधा भार्गव

नव वर्ष की तरंग में उत्सव - महोत्सवों की बाढ़ आ गयी थी और उसमें बहे जा रहे थे नई पीढ़ी के नये जवान I जगह -जगह पुलिस के जवान तैनात थे I कुछ गंभीर ,कुछ बातों में मशगूल i
-क्या मस्ती में झूम रहे हैं ,पीने की हद कर दी I
-पीने दो ,यही उम्र तो है बेफिक्री की I
-इस बेफिक्री ने ही तो मुझे फिक्र में डाल दिया है I कहीं हंगामा खड़ा न कर दें ये I
-चुप बैठे रहो I इन्हें छेड़ना ठीक नहीं I बिगड़े रहीस हैं I सांड की तरह अपने सींगों से हमें कभी भी घायल कर देंगे I
तभी एक लड़की आई , पुलिस जवान से बोली -अंकल नए वर्ष का आपके लिए उपहार i
जवान ने इधर - उधर नजर फेंकी -कोई देख तो नहीं रहा है फिर बाज की तरह झपट्टा मारकर पैकिट को दबोच लिया फुर्ती से उसे खोला I देखा - - -एक दर्जन चूड़ियाँ - - - झिलमिला रही थीं
I

* * * * *

1 टिप्पणी:

शरद कोकास ने कहा…

बहुत बढ़िया सटायर है इस लघुकथा में हर पंक्ति किसी न किसी चरित्र विशेष को उजागर करती है ।