20 मई 2010

शब्दकार की 250 वीं पोस्ट -- आने दो बेटियों को धरती पर -- दिव्या गुप्ता जैन की कविता

ये शब्दकार की दो सौ पचासवीं (250) पोस्ट है। इस कविता को दिव्या गुप्ता जैन ने स्क्रेप के द्वारा भेजा है।
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आने दो बेटियों को धरती पर

मत बजाना थाली चाहे
वरना कौन बजाएगा
थालियाँ कांसे की
अपने भाई-भतीजों के जन्म पर
...

आने दो बेटियों को धरती पर
मत गाना मंगल गीत चाहे
वरना कौन गाएगा गीत
अपने वीरों की शादी में
...

आने दो बेटियों को धरती पर
मत देना कोई विश्वास उन्हें
वरना कैसे होंगे दर्ज अदालत में
घरेलू हिंसा के मामले
...

आने दो बेटियों को धरती पर
मत देना कोई आशीर्वाद उन्हें
वरना कौन देगा गालियाँ
माँ-बहन के नाम पर
...

आने दो बेटियों को धरती पर
मत देना दान-दहेज़ उन्हें
वरना कैसे जलाई जाएँगी बेटियाँ
पराए लोगों के बीच
...

आने दो बेटियों को धरती पर
पनपने दो भ्रूण उनके
वरना कौन धारण करेगा
तुम्हारे बेटों के भ्रूण
अपनी कोख में
...

9 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

एक सशक्त रचना।

दीपक 'मशाल' ने कहा…

तकलीफ से भर गया मन.. पर २५० वीं पोस्ट की बधाई तो देनी ही है..

राम त्यागी ने कहा…

शुक्रिया ...

http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

divya kee chintaayen darasal sabki chintaayen honi chaaihye...varna likhne aur padhne kaa faayadaa hi kyaa....!!

Unknown ने कहा…

A touching poem. Divya has tried to bringout the importance of girlchild, a vital part of the universe. But why she should be a subject for abuse and violence? She should be cherished.

Unknown ने कहा…

Bahut achci rachna

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

दिव्या की रचना कहानी कह रही है हर बेटी की, जो आज भी हमारे इतने आधुनिक और सभ्य होने के बाद भी उसको उसके अस्तित्व के लिए संघर्ष के लिए छोड़ देते हैं और कहीं तो उसे जीने ही नहीं देते हैं.
बहुत गहरी बात है , इस कविता कि सच्चाई को स्वीकार कर लें वही अच्छा है नहीं तो फिर सृष्टि का अस्तित्व ही खतरे मेंपड़ जाएगा.

अरुणेश मिश्र ने कहा…

प्रशंसनीय ।

बेनामी ने कहा…

bet ke uper kavita bahut hi achi lagi