07 जून 2010

इस कोढ़ में कितनी खाज है!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
दोस्तों,जब से झारखण्ड बना....इसे लेकर ना जाने कितने स्वप्न आँखों में जले और देखते ही देखते बुझ भी गए....लेकिन आखों के सपने ऐसे हैं कि कभी ख़त्म ही नहीं होते...और मुश्किल यह है कि कभी पूरे भी नहीं होने को आते....झारखण्ड का हर नागरिक जैसे सलीब पर चढ़ा अपनी आखिरी साँसों के खत्म होने का इंतज़ार कर रहा है...क्यूंकि हालात ऐसे हैं कि किस-किस बात पर आन्दोलन किये जाएँ...प्रशासन और मंत्रालय का कोई भी हिस्सा अपने कार्य को लेकर तनिक भी गंभीर नहीं है...और मज़ा यह कि सब-के-सब "चोट्टे-सूअर-मवाली-हरामखोर-राज्य और देश-द्रोही"लोग मलाई भी मार रहे हैं और मालामाल भी हुए जा रहे हैं...और काम के नाम पर सिर्फ-और-सिर्फ माल खाने का काम हो रहा है....इस राज्य के एक-एक नागरिक का एक-एक दिन एक तरह की वितृष्णा के साथ गुजर रहा है...और मुझे संदेह है कि जाने कब यह सब किसी भी क्षण एक अनियंत्रित हिंसा में बदल जाए....और जब ऐसा होगा...तब शायद किसी दंगे की तरह नेताओं और उनके चमचों-गुर्गों को चुन-चुन कर मार डाला जाए.....ऐसा अभी से दीख पड़ रहा है.....ऐसे ही विचार वर्षों से दिलो-दिमाग में आते रहते हैं....कि अगर अब भी यह सब नहीं रुका तो न जाने कब राज्य का हरेक नागरिक ही नक्सली बन जाएगा....और.........


ये किन मक्कारों का राज है
इस कोढ़ में कितनी खाज है!!
पता नहीं क्या होना है अब
ये किस भविष्य का आज है !!
कि नेता हैं या कुत्ते-बिल्लियाँ
छील रहे हैं कितनी झिल्लियाँ !!
झारखण्ड को छला है जिन्होंने
क्या दी जाए इसकी उनको सज़ा ??
ये कौन से लोग हैं कि जिनको
मादरे-वतन की कीमत का नहीं पता....
ये कौन से लोग हैं कि जिनको
चमन की जीनत का नहीं पता....
अगर कुछ भी नहीं पता इन्हें तो फिर
किस तरह हम पर ये कर रहे हैं राज....
और क्यूँ नहीं हो रही हमें कोई भी खाज ??
उट्ठो कि ऐसे लोगों को भून दें हम आज
उट्ठो और कहो कि ऐसे लोगों का ये चमन नहीं !!
ऐसे लोगों को दोस्तों कह दो हमेशा के लिए.....
नहीं-नहीं-नहीं-नहीं-नहीं-नहीं-नहीं-नहीं......
और अगर नहीं माने फिर भी ये अगर तो फिर
ख़त्म कर दो इन्हें अभी यहीं की यहीं....
बहुत हो गया दोस्तों कि अब तो खड़े हो जाओ
बच्चों की तरह मत जीओ,अब बड़े भी हो जाओ !!
जिनके लिए बनाया गया है यह झारखण्ड
उन्हीं को किये जा रहे हैं सब खंड-खंड
रण ही अगर लड़ना है तो कमर कस लो सब-के-सब
ये नहीं मानेंगे साले बातों से कुछ भी नहीं अब
तुम्हें मेरे दोस्तों दरअसल कुछ करना नहीं है अब
बस अबके पहचान लो इन सब "कुत्तों"को.....
बस अबके चुनाव में जमा-जमाकर कसकर....
कई लात मार देना इन सभी के चूतडों पर....
कि फिर कभी दिखाई ना दें ये गलती से भी
झारखंड के किसी भी किस्म के परिदृश्य पर....
ये किन कमीनों को पहना दिया हमने गलती से ताज है
अब किस मुहं से कहोगे कि तुम्हें झारखंड पर नाज है !!
दोस्तों ये कविता नहीं है ये तुम्हारे भड़कने का आगाज है
अभी सब कुछ मर नहीं गया है...
अभी तुम्हारे सामने बहुत बड़ी परवाज़ है.... !!!

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