ग़ज़ल -- देवी नागरानी
मालिक है कोई, मजदूर कोई
मसरूर कोई, मजबूर कोई
मासूम को सूली मिली कैसे
क़ुद्रत का भी है दस्तूर कोई
ये भूख नहीं इक ख़ंजर है
है पेट में इक नासूर कोई
मिट्टी में मिलेगा जब इक दिन
क्यों इतना है मग़रूर कोई
क्यों हुस्न पे यूँ इतराती है
जन्नत की है क्या तू हूर कोई
आसां जीवन कोई जीता इधर
मुश्किल से उधर है चूर कोई
बदनाम हुआ जितना ‘देवी’
उतना ही हुआ मशहूर कोई
देवी नागरानी
2 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी प्रस्तुति। नवरात्रा की हार्दिक शुभकामनाएं!
nice.
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