उठ रही है आग आज मिरे सीने में
कि चढ़ रहा है कोई दिल के जीने में !!
धूप है कि सर पे चढ़ती जा रही है
और निखार आ रहा मिरे पसीने में !!
अब यहीं पर होगा सभी का फैसला
कोर्ट सड़क पर बैठ चुकी है करीने में !!
आओ कि उठ रही ललकार चारों तरफ
कोई कसर ना बाकी रखो अपने जीने में !!
भले ही कोई गांधी हो ना कोई सुभाष
इस हजारे को ही बसा लो अपने सीने में !!
अब भी अगर जागे नहीं तो फिर कहना नहीं
कोई बचाने आयेगा नहीं तुम्हारे सफीने में !!
2 टिप्पणियां:
बहुत खूब …………सुन्दर आह्वान्।
waah! bahut hi badhiya
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
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