06 जून 2011

लघुकथा



 गुलाम /सुधा भार्गव



मेरे आते  ही तुम सितार वादन लेकर बैठ जाती हो। सुबह का गया शाम को घर आता हूँ । पीछे से इसके लिए समय नहीं मिलता क्या !                        
                                                                                                                   
-सारे दिन बच्चों की खिटपिट.नौकरानी की चखचख ----अभी तो साँस लेने को समय मिला है।
-इस समय तो थोड़ा मेरे पास आ जाओ |
--ओह !क्या चाहिए आपको- - -- --नाश्ता मेज पर रख दिया ,चाय नौकरानी ने बना दी । अब क्या- आपको खिलाऊँ- - - !
--हर्ज क्या है खिलाने में--- तुम्हारे एक स्पर्शमात्र से खाने का स्वाद दुगुना हो जायेगा ।
पल में सारी  थकान मिट जायेगी।
-तुमने तो मुझे गुलाम समझ  रखा है।
-तुम मेरी गुलाम ---न --न --न -----------!
गुलाम तो हुजूर हम हैं  आपके -- सुबह से शाम तक खटते जो हैं ।                                                                          
 खाते  खोलते है तो साझे में ,सारा पैसा होता है आपके हवाले। फिर नाचते है खाली जेब आपके इशारों पर।
अब आप ही  बताइए  कौन किसका गुलाम है- - -  !

विशाल बड़ी अदा से वह सब कुछ कह गया जो उसके दिल में आया  पर उसकी पत्नी उसे दिल से लगा बैठी ।
गुलाम शब्द ने फिर मुड़कर उनके दरवाजे की ओर न देखा |ऐसा भागा -जैसे उसकी चोरी पकड़ ली गई हो
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1 टिप्पणी:

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

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"नयी पुरानी हलचल"