28 फ़रवरी 2010

हितेश कुमार शर्मा की कविता - होली का त्यौहार सलोना

मौसम मादक हुआ हवा महकी महकी है,
दूर आम की डाली पर कोयल चहकी है।
होली का आगमन हुआ है मन आँगन में,
अंग उमंग तरंग साँस बहकी बहकी है।

नभ में इन्द्रधनुष की सतरंगी चूनर है,
धरती के माथे पर फूलों की झूमर है।
गली मोहल्ले में रंगों की बरसात हो रही,
रंगों से बच इधर उधर जाना दूभर है।

गीत गा रही हैं सुहागिनें बौराई सी,
कहीं-कहीं हैं आँख मिचौली शरमाई सी।
पीकर भंग अनंग हुए हैं कुँवर कन्हाई,
उजली-उजली धूप है अलसाई सी।

होली के दिन शिकवे गिले नहीं होते हैं,
कुछ करते हैं नशा और पीकर सोते हैं।
रंगों में उल्लासित तरंगित मन मतवारे,
सद्बुद्धि सज्जन तो होश नहीं खोते हैं।

परिजन पुरजन सबके हाथ गुलाल सने हैं,
टेसू का रंग भर पिचकारी सभी तने हैं।
हाथ और मुँह काले-पीले रंग-बिरंगे,
मस्ती में कुछ झूम रहे कुछ बने-ठने हैं।

बेगाने तो दूर-दूर से ताक रहे हैं,
केवल अपने ही अपनापन आँक रहे हैं।
चहक रहे हैं कुछ तो कुछ बिलकुल गुमसुम हैं,
खड़े नयन में इक दूजे के झाँक रहे हैं।

रंग-बिरंगी मतवारी होली आयी है,
बच्चे बूढ़े सबके ही मन को भायी है।
सबको शुभ हो होली का त्यौहार सलोना,
यही भावना प्रिय सुकामना मन भायी है।

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हितेश कुमार शर्मा
गणपति भवन, सिविल लाइन्स,
बिजनौर - 246701 (उ0प्र0)

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