20 नवंबर 2009

प्रेम नारायण गुप्ता की लघुकथा - टेक केयर

लघुकथा: टेक केयर

प्रेम नारायण गुप्ता

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वर्माजी बहुत ख़ुश थे कि उनका बेटा विकास अच्छे से सैटल हो गया था। अब तो विकास ने मुंबई में अपना फ़्लैट भी ले लिया है और बच्चों के साथ मज़े से वहीं रह रहा है। वर्मा दंपती अब काफ़ी बूढ़े हो गए हैं और अक्सर बीमार रहते हैं। पेंशन के जिन रुपयों से गृहस्थी चल जाती थी अब वो कम पड़ने लगे हैं क्योंकि मँहगाई, दवाएँ और फलों का खर्च बजट बिगाड़कर रख देता है।
माँ ने फोन करके बेटे को घर बुलवाया तो वो छुट्टियों में पिता की बीमारी का हाल-चाल जानने चला आया। माँ-पिताजी बेटे को देखकर बहुत ख़ुश हुए और बहू और पोते-पोती को साथ न लाने पर नाराज़ भी हुए। आज बरसों बाद रसोई में कई चीज़ें एक साथ बनीं और बेटे को ख़ूब खिलाया-पिलाया।
बेटे ने पिता से पूछा, ‘‘अब तो दिल्ली में प्रापर्टी के दाम बहुत बढ़ गए हैं। अपना मकान कितने का चल रहा है?’’
ये सुनकर वर्माजी को अच्छा नहीं लगा और वो सुना-अनसुना कर गए। अगले दिन जाते हुए बेटा बोला, ‘‘ टेक केयर पापा।’’
मिसेज वर्मा की आँखें आँसुओं से भीग गईं और वे सोचती रहीं, ‘‘ बट हू विल टेक केयर?’’

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प्रेम नारायण गुप्ता
ए.डी.-26-सी, पीतमपुरा,
दिल्ली-110034
Email:
premnarayan.gupta@yahoo.co.in

4 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

इसमें विस्थापन के दर्द को बड़ी कुशलता से उतारा गया है। लघुकथा अपनी संक्षिप्तता, सूक्ष्मता एवं सांकेतिकता में जीवन की व्याख्या को नहीं वरन् व्यंजना को समेट कर चली है।

दीपक 'मशाल' ने कहा…

ek kadwi haqiqat... badi aasani se aapne chhoti si laghukatha me jane kitne lakhon boodhe mata-pitaon ki takleef likh daali..
badhai..
Jai Hind..

सुधाकल्प ने कहा…

लघुकथा पढ़कर छिपा दर्द उभर आया !. दर्द का अहसास तो उनको भी होगा पर उस समय वो न होंगे .एक वाक्य में पूरी लघुकथा समां गई है ! बधाई है !
सुधा भार्गव
sudhashilp.blogspot.com

शरद कोकास ने कहा…

लगुकथा है लेकिन अत्यंत मार्मिक ।