14 फ़रवरी 2010

कुँवारी किरणें (वेलेंटाइन दिवस पर विशेष)

सद्यःस्नात सी लगती हैं
हर रोज सूरज की किरणें।

खिड़कियों के झरोखों से
चुपके से अन्दर आकर
छा जाती हैं पूरे शरीर पर
अठखेलियाँ करते हुये।

आगोश में भर शरीर को
दिखाती हैं अपनी अल्हड़ता के जलवे
और मजबूर कर देती हैं
अंगड़ाईयाँ लेने के लिए
मानो सज धज कर
तैयार बैठी हों
अपना कौमार्यपन लुटाने के लिए !!

कृष्ण कुमार यादव

6 टिप्‍पणियां:

Randhir Singh Suman ने कहा…

तैयार बैठी हों
अपना कौमार्यपन लुटाने के लिए .thik hai nice

Amit Kumar Yadav ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्तियाँ..प्यार के इस अल्हड़ मौसम में हम सब यूँ ही प्रेम का गीत गुनगुनाते रहें.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्तियाँ..प्यार के इस अल्हड़ मौसम में हम सब यूँ ही प्रेम का गीत गुनगुनाते रहें.

Shahroz ने कहा…

बेहद निराले अंदाज में लिखी कविता. प्रेम-दिवस पर इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए के. के. यादव जी को बधाई.

Unknown ने कहा…

Beautiful Poem on Valentine Day...Congts.

S R Bharti ने कहा…

भावनाओं का सुन्दर संगमन व प्यार का अद्भुत अहसास परिलक्षित होता है इस कविता में. के. के. यादव जी को साधुवाद.