04 जुलाई 2010

मुकेश कुमार सिन्हा की कविता -- वो बचपन


जाड़े की शाम
धुल धूसरित मैदान
बगल की खेत से
गेहूं के बालियों की सुगंध
और मेरे शरीर से निकलता दुर्गन्ध !
तीन दिनों से
मैंने नहीं किया था स्नान
ऐसा था बचपन महान !
.
दादी की लाड़
दादा का प्यार
माँ से जरुरत के लिए तकरार
पढाई के लिए पापा-चाचा की मार
खेलने के दौरान दोस्तों का झापड़
सर "जी" की छड़ी की बौछाड़
क्यूं नहीं भूल पाता वो बचपन!!
.
घर से स्कूल जाना
बस्ता संभालना
दूसरे हाथों से
निक्कर को ऊपर खींचे रहना
नाक कभी कभी रहती बहती
जैसे कहती, जाओ, मैं नहीं चुप रहती
फिर भी मैया कहती थी
मेरा राजा बेटा सबसे प्यारा ..
प्यारा था वो बचपन सलोना !
.
स्कूल का क्लास
मैडम के आने से पहले
मैं मस्ती में कर रह था अट्टहास
मैडम ने जैसे ही मुझसे कुछ पूछा
रुक गयी सांस
फिर भी उन दिनों की रुकी साँसें ,
देती हैं आज भी खुबसूरत अहसास !
वो बचपन!!
.
स्कूल की छुट्टी के समय की घंटी की टन टन
बस्ते के साथ
दौड़ना , उछलना ...
याद है, कैसे कैसे चंचल छिछोड़े
हरकत करता था बाल मन
सबके मन में
एक खास जगह बनाने की आस लिए
दावं, पेंच खेलता था बचपन
हाय वो बचपन!!
.
वो चंचल शरारतें
चंदामामा की लोरी
दूध की कटोरी
मिश्री की चोरी !
आज भी बहुत सुकून देता है
वो बचपन की यादें
वो यादगार बचपन!!!!!!

-------------------------------

मुकेश कुमार सिन्हा

25 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

उम्दा रचना..हाय! वो यादगार बचपन. सिन्हा जी को बधाई.

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

dhanywad.........!!

Unknown ने कहा…

I am proud of you my brother , god bless you .. you have reminded me of my bachpan today ... tnx for recalling those golden years ..

putul ने कहा…

koi lauta de mere beete hue din....jo padhegaa usko apnaa bachpan yaad aa jaayega aur meree najron main yahi tumharee kalam ki taakat ..hai..MUKESH ...achhi kavita hai...likho aur likho ..

anilanjana ने कहा…

बचपन और उसकी यादें ..जैसे तपते जीवन पे पड़ती वर्षा की पहली फुआर.. सोंधी महक..न कोई अहम् . न कोई भविष्य की चिंता .. न कोई अतीत.की फिकर ..no attachments...इसलिए मासूम निश्चिन्त ..तुम्हारी कविता यादों के गलियारे में ले गयी मुकेश...और अनायास ही हाथ बहती हुई नाक को पोछने के लिए उठ गए ..काश...की वो जिंदगी फिर से आ सके..बचपन की यादें जिंदगी से मिले घाव केलिए मरहम का काम करती हैं ..सुन्दर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति केलिए बधाई

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

mukesh ji,
bachpan hota hin hai nirala, rahta mann matwala. par ye us samay samajh kahan aati hai, ye to ab samajh aati jab zindgi se wo sab chhin jata jo bachpan mein karte they. bas yaadgaar rah jaati hain un palon ki, jise jine ki chaah ab bhi hoti. bahut achhi rachna, badhai.

Unknown ने कहा…

bahut hi umda rachna hai ..maine pehle bhi kaha tha aur ab bhi yahi kehti hoon ki ise padhne ke baad mujhe "bachpan"kavita shubhudhra kumari chauhan dwara rachit yaad aa hi jaati hai ....bachpan saare dwesho aur udgar se mukt hota hai ...aapki rachana kathachit mujhe uski yaaad dilata hai aur haan hamari naak behti hi nahi rehti bachpan mai bhi ....[:)] padhkar bas bachpan ke din hi yaad aa gaye....bache jaisa dil fir jinda ho gaya ise padhkar ...very gud wrk keep it up bhaiya .....

ZEAL ने कहा…

Bahut achhi kavita likhi hai aapne. Ye bachpan aur uska innocence hi to khatam ho jata hum ,grown up logon mein.


"Mere dil ke kone mein, ek masoom sa bachha,
badon ki dekh kar duniya bada hone se darta hai "

shubhkaannayein !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आज भी यादों में ताज़ा है बचपन...बहुत सुन्दर रचना...जैसा बचपन मासूम होता है वैसी ही मासूमियत लिए है यह कविता....

रश्मि प्रभा... ने कहा…

itna masoom bachpan ... itna achha prastutikaran...haye kya din the wo bhi kya din the !

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

Mukesh ji maine jab ye rachna phli baar pada tha tabhi kaha tha, aapki is rachna se wo purani bachapan ki yaaden taza ho gayi, aaj fir kahti hun...........aapki ye rachna sachme wo purane yaodon ko lekar aa gayi

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बचपन की यादें समेटे सुंदर रचना ...

Satish Saxena ने कहा…

शुभकामनायें मुकेश जी !
कृपया भविष्य में मेल भेजते समय समूह मेल का उपयोग न करें ऐसा करके आप अनजाने में मेरा एड्रेस अनचाहे लोगों को दे रहे हैं !

निर्झर'नीर ने कहा…

वो बचपन की यादें

kon bhoolta hai sab to kahin na kahin kuch zindgii bachpan ke khayalo m hi jeete hai

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब - सुंदर अहसास - बचपन होता ही ऐसा है

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

bahut bahut dhanyawad, aap sabo ka, jo aapne mujhe protsahit karne ke liye apna comment diya.......:)

वाणी गीत ने कहा…

masoom bachpan ko yun yadon me sanja kar rakhna masumiyat aur insaniyat ko jinda rakhta hai ...

nice poem!

वाणी गीत ने कहा…

bachpan kee yadon ko yun sanjo kar rakhna hamare bheetar kee masumiyat aur insaniyat ko jinda rakhta hai...

nice poem...!

Neelam ने कहा…

Mukesh jee..ek baar fir se bachpan main lot jaane ka mann ho raha hai..aapki ye khoobsurat rachna padhne ke baad.
bahut bahut badhaai.

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

bahut hi sundar kavita...
bachman ki yaadon mein ham to jhool gaye...

डॉ टी एस दराल ने कहा…

मैडम की क्लास । लकी हो भाई । हमें तो बचपन में जो मास्टर पढाता था उन्हें सब बूढा मास्टर कहते थे । होम वर्क न करने वालों को ५ डंडे पड़ते थे , एक बार में नहीं तो अगले दिन के लिए उधार ।
अच्छी यादें हैं बचपन की ।

निर्मला कपिला ने कहा…

बचपन????????? मुझे तो लगता है ये यादें तो मरते दम तक आखिरी साँस मे भी नही भूलती। सब से सुन्दर ,निश्छल मासूम बचपन ही जीवन का सुनहरा अध्याय होता है। बहुत अच्छी लगी कविता । बधाई

पद्म सिंह ने कहा…

अरे! आपने तो मेरी कहानी लिख दी ... हा हा हा
मासूम रचना ...
सहगामी होने के नाते कुछ सलाह भी देना चाहता हूँ ...
१-निकलता दुर्गन्ध !को निकलती दुर्गन्ध कर लें
२-बौछाड़ को बौछार कर लें
३-प्रत्येक पद का अन्त किसी एक तुकान्त शब्द से करें तो रचना की सुंदरता और बढ़ सकती है

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

Very very thanx to all.........[:)]

nupur sinha ने कहा…

sir,aapki kavita bahut hi achchhi thi