नीलम पुरी की ग़ज़ल ----- नींद आ जाये
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तुम खवाब बनकर आयो तो नींद आ जाये,
आगोश मैं अपनी सुलाओ तो नींद आ जाये,
चूम लो अपने होठों से मेरी खामोश आँखों को ,
मेरी पलकों पर वही खवाब सजाओ तो नींद आ जाये,
तुम छु लो फिर गुज़रे ज़माने की तरह,
अहसास वही फिर से जगाओ तो नींद आ जाये.
मैं शमा बन तनहा जलती हूँ रोज रातों मैं,
तुम परवाना बन मुझसे लिपट जायो तो नींद आ जाये.
खून बहता है पानी बन रगों मैं मेरी,
तुम नस नस मैं समां जायो तो नींद आ जाये,
खामोश हूँ मैं किसी गुज़रे फ़साने की तरह,
मुझे ग़ज़ल की तरह ,तुम गुनगुनाओ तो नींद आ जाये.
मासूम तो हूँ मैं भी ,मगर नीलम की तरह ,
तुम भी मेरे लिए बदल जायो तो नींद आ जाये.
आज आग मेरी नस नस मैं लगाओ तो नींद आ जाये,
आगोश मैं अपनी सुलाओ तो नींद आ जाये।
आगोश मैं अपनी सुलाओ तो नींद आ जाये,
चूम लो अपने होठों से मेरी खामोश आँखों को ,
मेरी पलकों पर वही खवाब सजाओ तो नींद आ जाये,
तुम छु लो फिर गुज़रे ज़माने की तरह,
अहसास वही फिर से जगाओ तो नींद आ जाये.
मैं शमा बन तनहा जलती हूँ रोज रातों मैं,
तुम परवाना बन मुझसे लिपट जायो तो नींद आ जाये.
खून बहता है पानी बन रगों मैं मेरी,
तुम नस नस मैं समां जायो तो नींद आ जाये,
खामोश हूँ मैं किसी गुज़रे फ़साने की तरह,
मुझे ग़ज़ल की तरह ,तुम गुनगुनाओ तो नींद आ जाये.
मासूम तो हूँ मैं भी ,मगर नीलम की तरह ,
तुम भी मेरे लिए बदल जायो तो नींद आ जाये.
आज आग मेरी नस नस मैं लगाओ तो नींद आ जाये,
आगोश मैं अपनी सुलाओ तो नींद आ जाये।
7 टिप्पणियां:
मासूम तो हूँ मैं भी ,मगर नीलम की तरह ,
तुम भी मेरे लिए बदल जायो तो नींद आ जाये.
वाह....बहुत ही खूब लिखी है...
ज़िन्दगी में आप बस ऐसे हे लिखते जाओ तो मंज़र बदल जाए...
bahut hi achhi ghazal hai. Neelam Puri ek bahut hi savedansheel lekhika hai main hamesha unki navintam rachnaon ki intezar mein rehta hoon...Neelam ji aap ki yeh kavita bahut hi uttam hai...Daman
bahut acchi rachna...!
BArso se aankho main neend nahi,
khwab ban jaao to nind aa jaaye...![:)]
आज आग मेरी नस नस मैं लगाओ तो नींद आ जाये,
आगोश मैं अपनी सुलाओ तो नींद आ जाये।
iss tarah ki tadap aapke kalam se hi nikal sakta hai.........:)
apke kalam me jo jadu hai, wo sirf dharakne wala dil hi samajh sakta hai..............hai na:)
खूबसूरत ग़ज़ल....
great rachana....
good words..
and marvellous bhav..
i read it again and again...
खामोश हूँ मै किसी गुजरे फसाने की तरह
गजल बन कर के को़ई जो तुम गुनगुनाओ तो नींद आ जाये... अद्भुत हो तुम नीलू.. पर तुमने लिखना क्यों छोड़ रखा है.. ये नुकसान की भरपाई हिंदी साहित्य की कोई करायेगा जब तुम से जुर्माना बसूल कर तो नींद आजाये.. 😄 😄 विक्रम सिंह भदौरिया
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