28 जुलाई 2010

क्या तेरा जिस्म ख़त्म हो गया है ??

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!


उफ़ ये मेरा दिल क्यूँ रो रहा है
क्या कहीं कोई गुम हो गया है ??
ये क्या कह डाला है हाय तुमने 
हर लम्हा ही तंग हो गया है !!
खुद का दर्द भी नहीं समझता 
दिल कितना सुन्न हो गया है !! 
अब इस राख को मत संभालो 
अब सब कुछ ख़त्म हो गया है !!
ये सच्चाई की बू कैसी है यहाँ 
क्या कोई फिर बहक गया है ??
कब्र में रू से पूछता है "गाफिल
क्या तेरा जिस्म ख़त्म हो गया है ?

2 टिप्‍पणियां:

दीपक 'मशाल' ने कहा…

हट के लगी ये कविता और पसंद भी आई.. शुक्रिया सर जी..

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन!