26 फ़रवरी 2011

देवी नागरानी की २ ग़ज़ल

ग़ज़ल - १

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बेताबियों को हद से ज़िआदा बढ़ा गया

पिछ्ला पहर था रात को कोई जगा गया


मेरे ख़याल-ओ-ख़्वाब में ये कौन आ गया

दीपक मुहब्बतों के हज़ारों जला गया


कुछ इस तरह से आया अचानक वो सामने

मुझको झलक जमाल की अपने दिखा गया


इक आसमां में और भी हैं आसमां कई

मुझको हक़ीक़तों से वो वाकिफ़ करा गया


पलकें उठी तो उट्ठी ही देवी रहीं मेरी

झोंका हवा का पर्दा क्या उसका उठा गया


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ग़ज़ल - २

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तन के मकान में भले ही रह रहे हैं हम

उसका उधार क्या कभी लौटा सके हैं हम

यूँ यकबयक बरस पड़ी हमपे मुसीबतें

कुछ ऐसे उजड़े हैं कि न फिर बस सकें हैं हम

दीवार उठ गयी है जो घर - घर के दरमियाँ

तन्हाईयों में जैसे बसर कर रहे हैं हम

बिछड़े जो दर - दरीचों से मिलकर गले कभी

देखा जो दूर से उन्हें तो रो पड़े हैं हम

दीवारों में दबी हुई ऐ देवी सिसकियाँ

पदचाप उनकी साँसों में सुनते रहे हैं हम


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देवी नागरानी

मुम्बई

7 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

Devi Nangrani ने कहा…

vandana ji aapka abhaaar is vishay ko charcha manch par laane ke liye

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

बेहतरीन ग़ज़लें....
....लाजवाब प्रस्तुति के लिए आपको बधाई।

Kailash Sharma ने कहा…

दीवार उठ गयी है जो घर - घर के दरमियाँ

तन्हाईयों में जैसे बसर कर रहे हैं हम..

बहुत खूब! दोनों ही गज़ल बहुत ख़ूबसूरत..

Dr Varsha Singh ने कहा…

डॉo कुमारेन्द्र सिंह सेंगर की बहुत सुन्दर प्रस्तुति....

हार्दिक आभार!

​अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhan ने कहा…

बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति . बधाई स्वीकारें- अवनीश सिंह चौहान

Devi Nangrani ने कहा…

Aap sabhi ka bahut bahut dhanyawaad is protsahan ke liye
Devi Nangrani