07 अप्रैल 2011
तारों भरा आकाश
संध्या कहाँ हो तुम ? उषा ने अपनी छोटी बहन को ऊपर छत से आवाज लगाई तो सीढियां चढ़ती हुई संध्या तेजी से वहीँ आ पहुची । ''''क्या है दीदी?'' ''अरे देख तो आकाश में आज कितने तारे चमक रहें !'' ।दीदी के चेहरे पर चमक देखकर संध्या की आँख भर आई पर उसने आंसू छिपाते हुए कहा 'हाँ !दीदी इसे ही शायद ''विभावरी'' की संज्ञा दी जाती है ।'' उषा एकाएक रुआंसी हो आई ''...बब्बू होता तो शायद ताली बजाता होता और ....''यह कहते हुए संध्या के गले लगकर फफक-फफक कर रो पड़ी .संध्या के ह्रदय में भी हूक सी उठी ''......काश बब्बू उस दिन स्कूल न जाता ।'' स्कूल बस व् ट्रक की सीधी टक्कर में कुछ अन्य बच्चों के साथ चार वर्षीय बब्बू भी हादसे का शिकार हो गया था .इस हादसे ने उषा और उसके पति मुकुल के दिल का सुकून व् जीवन के प्रति आस्था को छिन्न-भिन्न कर डाला था .उषा की उदासी देखते हुए ही उसके पिता जी उसे ससुराल से यही घर ले आये थे .संध्या का साथ पा उषा कुछ-कुछ तो अपने गम पर काबू करना सीख गयी थी पर इतना आसान तो नहीं होता जिगर के टुकड़े को भुलाना .उषा की माँ भी उसको देखकर मन ही मन में घुली जाती थी .उषा को समझाते हुए संध्या नीचे ड्राइंग रूम में ले आयी .नीचे आने पर उषा को तबियत ख़राब लगी तो बेडरूम में जाकर सो गयी .माँ,पिता जी व् संध्या चिंतित हो उठे .सुबह तक भी जब उषा का स्वास्थ्य गिरा गिरा रहा तो माँ के कहने पर पिता जी लेडी डॉक्टर को बुला लाये .डॉक्टर ने चेकअप कर मुस्कुराते हुए कहा ''उषा माँ बनने वाली है और आप परेशान हो रहे हैं ? ''उनके यह कहते ही सबकी आँखों में ख़ुशी के आंसू छलक आये .संध्या ने धीरे से उषा के कान में कहा '....लो दीदी फिर से आने वाला है जो तारों भरे आकाश को देखकर ताली बजाएगा !'' उषा ने संध्या को गले से लगा लिया . शिखा कौशिक
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5 टिप्पणियां:
bahut sundar bhavon se bhari laghu katha.ant bhala to sab bhala.
सकारात्मक दृष्टि कोण लिए लघुकथा अच्छी लगी |
सुधा भार्गव
सुन्दर लघुकथा।
सधी लेखनी सुंदर चित्रण
sunder katha.....sakaratmak...
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