08 मई 2011

कोई हक़ नहीं -लघु कथा

कोई हक़ नहीं -लघु कथा

सोनाक्षी क्या कहती हो -विवाह बेहतर है या लिव इन रिलेशनशिप ? सिद्धांत के बेधड़क पूछे गए सवाल से सोनाक्षी आवाक रह गयी उसने प्रिया की और इशारा करते हुए कहा -''प्रिया से ही क्यों नहीं पूछ लेते !''सिद्धांत मुस्कुराता हुआ बोला ''ये सती-सावित्री के युग की है ये तो विवाह का ही पक्ष लेगी पर आज हमारी युवा पीड़ी जो आजादी चाहती है वो तो लिव-इन रिलेशनशिप में ही है .'' प्रिया ने सिद्धांत को आँख दिखाते हुए कहा -''सिद्धांत मंगनी की अंगूठी अभी उतार कर दूँ या थोड़ी देर बाद ..? इस पर सोनाक्षी ठहाका लगाकर हस पड़ी और सिद्धांत आसमान की और देखने लगा .सोनाक्षी ने प्रिया की उंगली में पड़ी अंगूठी को सराहते हुए कहा ''...वाकई बहुत सुन्दर है !सिद्धांत आज की युवा पीड़ी की बात तो ठीक है ....आजादी चाहिए पर सोचो यदि हमारे माता-पिता भी लिव-इन -रिलेशनशिप जैसे संबंधों को ढोते तो क्या हम आज गरिमामय जीवन व्यतीत करते और फिर भावी पीड़ी का ख्याल करो जो बस यह हिसाब ही लगाती रह जाएगी कि हमारे माता पिता कब तक साथ रहे ?हमारा जन्म उसी समय के संबंधो का परिणाम है या नहीं ?हमारे असली माता पिता ये ही हैं या कोई और ?कंही हम अवैध संतान तो नहीं ?....और भी न जाने क्या क्या .....अपनी आजादी के लिए भावी पीड़ी के भविष्य को बर्बाद करने का तुम्हे या तुम जैसे युवाओं को कोई हक़ नहीं !'' सोनाक्षी के यह कहते ही प्रिया ने सिद्धांत के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा -''अब कभी मत पूछना विवाह बेहतर है या लिव-इन-रिलेशनशिप .''सिद्धांत ने मुस्कुराते हुए ''हाँ'' में गर्दन हिला दी .
शिखा कौशिक

5 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

aapkee baat me dam hai .sarthak sandesh detee laghu katha .aabhar

दीपक 'मशाल' ने कहा…

lajawaab..

Arunesh c dave ने कहा…

विवाह का स्थान कोई और संस्था नही ले सकती हां बिना मरे स्वर्ग की इच्छा रखने वालों को अंतरिम राहत अवश्य पहुंचा सकती है ।

शब्दकार-डॉo कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

बहुत जबरदस्त कमेन्ट है, बस आज की पीढ़ी इस बात को समझे जो किसी न किसी रूप में देह को ही प्रमुखता दे रही है.
बधाई सुन्दर रचना के लिए, प्रासंगिक रचना के लिए.

सुधाकल्प ने कहा…

आधुनिकता की आड़ में गुजर रही जिन्दगी कितने ही भ्रम व संदेहों के घेरे में चक्कर लगा रही है। क्या व्यक्तिगत सुख और स्वतंत्रता एक मोड़ पर आकर कराहने नहीं लगते !यह लघुकथा अपनी सार्थकता लिए समयानुसार है ।
सुधा भार्गव