सद्यःस्नात सी लगती हैं
हर रोज सूरज की किरणें।
खिड़कियों के झरोखों से
चुपके से अन्दर आकर
छा जाती हैं पूरे शरीर पर
अठखेलियाँ करते हुये।
आगोश में भर शरीर को
दिखाती हैं अपनी अल्हड़ता के जलवे
और मजबूर कर देती हैं
अंगड़ाईयाँ लेने के लिए
मानो सज धज कर
तैयार बैठी हों
अपना कौमार्यपन लुटाने के लिए !!
कृष्ण कुमार यादव
6 टिप्पणियां:
तैयार बैठी हों
अपना कौमार्यपन लुटाने के लिए .thik hai nice
खूबसूरत अभिव्यक्तियाँ..प्यार के इस अल्हड़ मौसम में हम सब यूँ ही प्रेम का गीत गुनगुनाते रहें.
खूबसूरत अभिव्यक्तियाँ..प्यार के इस अल्हड़ मौसम में हम सब यूँ ही प्रेम का गीत गुनगुनाते रहें.
बेहद निराले अंदाज में लिखी कविता. प्रेम-दिवस पर इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए के. के. यादव जी को बधाई.
Beautiful Poem on Valentine Day...Congts.
भावनाओं का सुन्दर संगमन व प्यार का अद्भुत अहसास परिलक्षित होता है इस कविता में. के. के. यादव जी को साधुवाद.
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