14 जून 2009

डॉ0 अनिल चड्डा के दोहे

आज भावना देश में, बिके कोड़ियों मोल,
द्वेष मिले हर वेश में, चाहे जितना तोल !

मर जायेगा खोज के, अपना नाही कोय,
पेट भरन को आपना, नोचेंगें सब तोय !

सुन ले प्यासे की कुआँ, ऐसी नाही रीत,
पानी का भी मोल है, सीख सके तो सीख !

चौराहे पर मैं खड़ा , सोचुँ कित को जाऊँ,
पकड़ूँ जिसका हाथ भी, असत ही मैं पाऊँ !

जीने की क्या बात है, चाहे जिस तरह जी,
विष पर भ्रष्टाचार का, अमृत मान और पी !

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अपनी-अपनी सोच है, अपने-अपने मूल्य,
पाप-पुण्य कुछ भी नहीं, अंत में सब कुछ शून्य !

अपना-अपना भाग है, अपने-अपने करम,
धर्म के ठेकेदार भी, करते देखे अधर्म !

करके पूजा-पाठ ही, जीवन दें बिताये,
ईश्वर की इसी सृष्टि को, दे मान नहीं पाये !

अपने-अपने स्वार्थ को, जीते सारे लोग,
छुरा पीठ में घोंपना, सबके मन का रोग !

जीना है तो सीख ले, तू भी करना घात,
वरना तू हर मोड़ पर, पायेगा बस मात !

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डा0अनिल चड्डा

http://anilchadah.blogspot.com
http://anubhutiyan.blogspot.com

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