-अजी सुनते हो.......! सुबह-सुबह चाय के कप से भी पहले श्रीमती जी की मधुर वाणी हमारे कानों में पडते ही हम समझ जाते हैं कि आज जरूर कोई नई रामायण में महाभारत होने होने वाली है। आप सोचते होगें कि अजीब प्राणी है । भला रामायण में महाभारत की क्या तुक है। दोनों का एक दूसरे के साथ भला क्या तालमेल....?लेकिन बन्धु ऐसा ही होता है शादी-शुदा जिन्दगी में सब कुछ संभव है।जब मेरे जैसे भले जीव के साथ हमारी श्रीमती जी का निर्वाह संभव हो सकता है तो समझ लीजिऐ कि रामायण में महाभारत भी हो सकती है। श्रीमती की वाणी से वैसे ही हमारे कान ही क्या रौंगटे तक खडे हो जाते हैं।
हम तपाक से बोले -‘-बेगम तुम्हें तो मालूम ही है कि हम जब भी सुनते हैं तो केवल तुम्हारी ही सुनते हैं वर्ना किसी की क्या मजाल कि हमें कूछ भी सुना सके.........?’
--सुनोगे क्यॊं नहीं भला......? हजार बार सुनना पडेगा..... अब तो आप कुछ भी नहीं कर सकते.......!
--भागवान हम तो पहले ही तु्म्हारे समने हथियार डाले खडे हैं फिर भला किस बात का झगडा......?
-झगडा कर भी कैसे सकते हैं आप......?
-क्यों झगडा करने पर क्या सरकार ने टेक्स लगा दिया है या फिर संविधन में कोई संशोधन लागू हो गय है जिससे मर्दों की बोलती बन्द हो गई है...?
-ये पढिये अखबार... सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों ने कहा है कि यदि शांति चहते हो तो धर्म पत्नी की बात माननी होगी....!
-इसमें भला नई बात क्या हुई......? हर कोई समझदार पुरुष जानता है कि गृह शान्ती के लिऐ गृहमंत्राणी को प्रसन्न रखन जरूरी है । समझदार मर्द की बस यही तो एक मात्र मजबूरी है । और पत्नी है कि पुरुष की समझदरी को कमजोरी समझकर भुनाने लगती है .।शादी के समय पंडित जी भी बेचारे पुरुष को सात बचनों में इस तरह बांध देते हैं कि यदि पुरुष को वे वचन याद रह जाऐं तो आधा तो बेचारा वैसे ही घुट-घुट कर बीमार हो जाऐ । आजादी से सांसे लेने पर भी बेचारे के पहरे लग जाते है।इसीलिऐ हमारे जैसे बुद्धीमान लोग ऐसी दुर्घटनाओं को याद ही नहीं रखते। शायद इसीलिऐ अभी तक श्रीमती के साथ रहते हुऐ भी सभी बीमरियों से मुक्त हैं और शत-प्रतिशत स्वस्थ्य हैं ।अब आप ही बताऐं कि भला सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों को सरे आम ऐसी नाजुक बाते कहने कि क्या जरूरत थी....? उन्हें मालूम होना चहिऐ कि आजकल ऐसी खबरें महिलओं तक जल्दी पहुंचती है ।क्योंकि साक्षारता का प्रतिशत भी तो काफी बढ गया है। वसे भी सुप्रीमो को भल किसी कोर्ट के संरक्षण की क्या जरुरत ......संरक्षण तो हम जैसे निरीह प्राणियों को चाहिऐ........?अब आगे -आगे देखिये होता है ,
न्याय उनका हो गया रोता है क्या ॥डॉ.योगेन्द्र मणि
14 जून 2009
डॉ0 योगेन्द्र मणि का व्यंग्य - सुप्रीमो को सुप्रीम कोर्ट का संरक्षण
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