24 जून 2009

कुंवर दिनेश से डॉ0 अशोक गौतम की बातचीत


साक्षातकार
अलग पहचान वाला कवि: ‘कुँवर दिनेश’
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इन दिनों कुँवर दिनेश हिमाचल प्रदेश के जाने-माने कवियों में चर्चित हस्ताक्षर हैं। ये लेखक, संपादक, समीक्षक, गीतकार एक साथ हैं। हिन्दी व अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में समान अधिकार से लिखते हैं। अंग्रेजी पत्रिका ’लिटक्रिट इंडिया’ व दुभाषिया पत्र ’हायफन’ का सम्पादन कर रहे हैं। अंग्रेजी में इनके दस कविता संग्रह व चार आलोचना पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। हिन्दी में इनके तीन कविता संग्रह - ‘पुटभेद’, ‘कुहरा धनुष’ और ‘उदयाचल’ प्रकाशित हुए हैं। साथ ही देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कविताएं, आलेख व समीक्षाएं प्रकाशित हुई हैं। समय समय पर इनका काव्य पाठ का प्रसारण दूरदर्शन से भी होता रहता है। दूरदर्शन शिमला के कार्यक्रम ‘इनसे मिलिए’ में इनसे साक्षात्कार का सीधा प्रसारण हो चुका है।
अंग्रेजी काव्य के लिए इन्हें हिमाचल प्रदेश साहित्य अकादमी पुरस्कार - 2002 से सम्मानित किया जा चुका है तथा हिन्दी काव्य पुटभेद के लिए ये आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान - 2004 से विभूषित हैं।
कुँवर दिनेश व्यवसाय से अंग्रेजी भाषा एवम् साहित्य के प्रवक्ता हैं। सम्प्रति शिमला के उत्कृष्ट शिक्षा केन्द्र, राजकीय महाविद्यालय, संजौली में कार्यरत हैं।
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अशोक गौतम: कुँवर जी, आपने लिखना कब और कैसे शुरू किया? कविता के प्रति आप कैसे आकृष्ट हुए?
कुँवर दिनेश: मैंने लगभग तेरह वर्ष की आयु में लिखना शुरू किया था, जब मैं स्कूल में पढ़ रहा था। अपनी बात कहने की, अपने विचारों व अपनी भावनाओं को दूसरों से साझा करने की इच्छा पहले से ही मेरे भीतर थी, जिसकी अभिव्यक्ति लेखन में, विशेषकर कविता के रूप में हुई।
असल में बालपन से ही कविता मेरे हृदय को छूती थी। तब भी कम से कम शब्दों में अधिक कहना - कविता की यह विशेषता मुझे अत्यधिक भाती थी। अपनी बात को अलग ढंग से कहना, कविता की सुंदर शब्दावली, लयात्मकता एवम् भाषिक कलात्मकता ने मुझे आकृष्ट किया और अनायास ही मैं कविता के प्रभाव क्षेत्र में प्रविष्ट हुआ। शुरू में पाठ्यक्रम के रहस्यवादी, रोमानी व भक्ति तथा रीतिकालीन कवियों ने मुझे बेहद प्रभावित किया जिससे कविता को पढ़ने व लिखने में मेरी अभिरुचि बढ़ी और मेरी आरंभिक कविताओं की शब्दावली व शैली पर भी उनका विषेश प्रभाव रहा।
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अशोक गौतम: आपने शुरू की कविताएं किसे सुनाईं? आपकी प्रथम प्रेरणा व प्रथम श्रोता कौन रहे? क्या आपके परिवार में कविता का माहौल था?
कुँवर दिनेश: मैं शुरू में अपनी कविताएं दूसरों को सुनाने में अधिक साहस नहीं जुटा पाता था। परिवार में भी कविता का माहौल नहीं था, न ही कविता के लिए प्रोत्साहन था क्योंकि कविता आजीविका का पर्याय नहीं बन पाती। किन्तु मुझे कविता लिखने में एक विशेष आत्मिक सुख एवम् संतुष्टि मिलती थी जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। स्कूल में अपने हिन्दी व उर्दू के अध्यापक को मैंने अपनी कुछ कविताएं सुनाईं जिन्होंने उन्हें सराहा और लिखते रहने के लिए मुझे प्रेरित व प्रोत्साहित किया। धीरे धीरे स्थानीय साहित्यिक संस्थाओं व साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित काव्य-गोष्ठियों में भी मैंने काव्य पाठ करना आरम्भ किया जिससे प्रदेश एवम् देश के अन्य भागों के प्रतिष्ठित कवियों से संपर्क होने लगा। मुझे याद है, मैं अभी दसवीं कक्षा में था जब मैंने एक संस्था के बैनर में देश के बहुचर्चित मंचीय कवि अशोक चक्रधर की अध्यक्षता में काव्य पाठ किया था।
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अशोक गौतम: कविताओं का प्रकाशन कब और कैसे कराया?
कुँवर दिनेश: साहित्यिक गोष्ठियों में प्रतिभागिता से मेरी सृजनशीलता को स्फूर्ति मिली व मैं कविता लिखता रहा। किन्तु आधुनिक कविता के तेवर देखकर रोमानियत व परंपरा से सनी अपनी कविताओं को अस्वीकृति के भय से मैंने प्रकाशित नहीं कराया। हालांकि मैं अंग्रेजी में भी कविताएं लिखता रहा जो मेरी चैदह वर्ष की आयु से ही देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं जैसे इण्डियन एक्सप्रैस, सन, फैमिना, राष्ट्रीय सहारा, पोइट, इत्यादि में प्रकाशित होने लगीं थीं। इन कविताओं में कुछ हिन्दी कविताओं का अनुवाद भी था। अंगे्रेजी कविताओं को स्वीकृति मिलती देख मैंने पहले अंग्रेजी में कुछ काव्य-संग्रह प्रकाशित कराए ; तदनन्तर हिन्दी में 'पुटभेद' शीर्षक से प्रथम संग्रह प्रकाशित कराया जिसमें किशोरावस्था से युवावस्था तक की कविताओं का चयन किया गया था। लगभग पंद्रह वर्षों की समयावधि में लिखीं इन कविताओं की भाषिक एवम् कलात्मक विविधता को एक संग्रह में प्रस्तुत करना बहुत कठिन था; अतः मैंने इन्हें इनके विषय, शैली एवम् स्तर के आधार पर तीन भागों में व्यवस्थित किया ।
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अशोक गौतम: क्या आप अपनी कविताओं का संशोधन/परिशोधन करते हैं? आपकी काव्य-रचना प्रक्रिया किस प्रकार की है?
कुँवर दिनेश: हाँ, मैं अपनी कविताओं को कई बार संशोधित/परिशोधित करता हूं। वांछित पर्याय प्रस्तुत करने के लिए मैं शब्दों के चुनाव एवम् संयोजन पर विशेष ध्यान देता हूं। कई बार तो कोई-कोई कविता तो महीनों तक पूरी नहीं हो पाती है। मैं कविता के स्वतः प्रस्फुटन पर निर्भर/आश्रित रहता हूं। मैं मानता हूं कि कविता 'सुखदा स्वयं आगता’ ही ठीक है।
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अशोक गौतम: कविता के विषय कैसे चुनते हैं?
कुँवर दिनेश: जो भी विषय मुझे प्रभावित करता है, अत्यधिक चिन्तित करता है और भीतर तक झकझोर देता है, वही मेरा काव्य विषय हो जाता है और अक्सर यह सहज रूप से होता है। मैं काव्य विषय के लिए अधिक संघर्श नहीं करता। किन्तु कुछ स्थायी भाव व सरोकार हैं जिन पर मेरे काव्य विशय अनिवार्य रूप से केंद्रित रहते हैं, जिनमें प्रमुख हैं - प्रकृति, मानवता, प्रेम और सत्य।
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अशोक गौतम: अपनी काव्य भाषा, शैली व शिल्प पर आप क्या कहना चाहेंगे?
कुँवर दिनेश: मैं नहीं जानता अपनी काव्य भाषा, शैली व शिल्प के विषय में क्या कहूं। यह काम आलोचकों का है और उन्हीं पर छोड़ देना बेहतर भी होगा। हाँ, इतना अवश्य कहूंगा कि आज के काव्य लेखन में कविताई के बजाय किसी न किसी विचारधारा विशेष प्रभाव अधिक है। मेरी कविता विचारधारात्मक नहीं है। जैसे कि मैंने पहले कहा, मैं कविता के सहज प्रस्फुटन पर अवलंबित रहता हूं। अतः जब, जैसे, जिस प्रकार कोई भाव प्रस्फुटित होता है वैसी ही कविता बन जाती है। मेरा आयास मात्र शब्दों के चयन एवम् संयोजन में रहता है। कुछ समीक्षक/आलोचक मुझे 'शब्द शिल्प का कवि’ कहते हैं तो कुछ मुझे रोमानी कहते हैं, तो कुछ आज के काव्य परिदृश्य में 'निश्चित परकोटे न बनाने वाला’ व 'किसी साँचे में न ढलने वाला’ , एक 'अलग पहचान वाला कवि’ कहते हैं। विभिन्न समीक्षकों ने मेरी कविताओं को निश्चिततः मौलिक, प्रयोगात्मक, कलात्मक वैविध्य से पूर्ण एवम् अर्थांतर-बोध की कविताएं कहा है, जिससे कहीं मैं भी सहमत हूं।
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अशोक गौतम: वर्तमान काव्य परिदृश्य में स्वयं को किस प्रकार देखते हैं? मुख्य काव्यधारा से आप स्वयं को कैसे जोड़ते हैं?
कुँवर दिनेश: मेरी कविताएं न तो पूर्णतया रोमानी खाके में फिट होती हैं और न ही आज की अकविता के प्रचलन का साथ देती हैं। जैसा कि आज की कविता में आधुनिकतावाद के नाम पर परंपरा का विरोध, मूल्यहीनता, अपठनीयता, शुष्कता एवम् अग्राह्यता है, मेरी कविताएं आज की कविता से कुछ हटकर हैं, और परंपरा एवम् आधुनिकता, आदर्श एवम् यथार्थ तथा रोमानी एवम् नवरोमानी के मध्यमार्ग पर समन्वय व सामंजस्य प्रस्तुत करती हैं। इनमें पर्यावरण, प्रकृति एवम् मानव-जगत् के अनिवार्य अंतर्सम्बन्धों की अभिव्यक्ति देखी जा सकती है। मत्र्य जगत् में मानव-अस्तित्व की समस्या, वर्तमान समाज की विरूपता/विद्रूपता व मानवीय सम्बन्धों के बदलते स्वरूप मुझे भी चिन्तित करते हैं, किन्तु मेरी अभिव्यक्ति अन्य कवियों से भिन्न है व किसी विचारधारात्मक प्रभाव से अस्पृष्ट है।
जहां तक प्रश्न है कविता की मुख्यधारा का, मैं नहीं समझता आज कोई मुख्यधारा है। कविता के क्षेत्र में भी खेमेबाज़ी है, धड़ेबाज़ी है व राजनीति है। जो कवि किसी खेमे में नहीं, वह अलग-थलग है वैयक्तिकता के कोटर में पड़ा है।
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अशोक गौतम: भारतीय काव्य शास्त्र के अलंकार एवम् रस विधान के आधार पर वर्तमान कविता पर आप क्या टिप्पणी करना चाहेंगे?
कुँवर दिनेश: अलंकार एवम् रसविधान के निकष पर वर्तमान कविता खरी नहीं उतरती। यत्र-तत्र अलंकारों के कुछ प्रयोग मिल भी जाएं, परन्तु रस की या तो शून्यता है या फिर बहुत से दोष विद्यमान हैं। यही कारण है की आज की कविता में न तो आनंद है, न हृदयग्राह्यता, न संदेष, न प्रेरणा। बहुत सी कविताएं अपठनीय व दुर्बोध हैं। आज की कविता बिम्ब-प्रधान है, गद्यात्मक है व अतिशय बौद्धिकता से पूर्ण है तथा इसका मुहावरा दुरूह, शुष्क एवम् भावशून्य है।
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अशोक गौतम: आपकी कविताओं में मिथकों का काफी प्रयोग हुआ है ; इनकी आधुनिक प्रासंगिकता पर थोड़ा प्रकाश डालें।
कुँवर दिनेश: जी हाँ, मैंने अपनी कविताओं में कुछ कालजयी तथा जीवनोपयोगी वैदिक एवम् पौराणिक मिथकों का प्रयोग अवश्य किया है, जो वर्तमान युग की जटिलताओं, समस्याओं व परिस्थितियों से जूझने के लिए नए विकल्प सुझाते हैं, परम्परा को आधुनिकता से जोड़कर जीवन-यापन के नए संदर्भ प्रस्तुत करते हैं तथा आज के युग में दुर्बोध से सुबोध, अनिर्णय से निर्णय व अविश्वास से विश्वास की ओर ले जाने का कार्य करते हैं।
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अशोक गौतम: आपकी कविताओं में नगरीय संवेदना किस प्रकार मुखरित हुई है?
कुँवर दिनेश: बढ़ते शहरीकरण एवम् भूमण्डलीकरण से हमारे समाज में सांस्कृतिक परिवर्तन हुए हैं जो अक्सर चिंतित करते हैं। अत्यधिक भौतिकततावाद, मूल्यह्रास, स्वार्थपरता, उपयोगितावाद, यांत्रिकता, एकाकीपन एवम् अन्तरद्वन्द्व भरी नगरीय संवेदना के प्रमुख घटक हैं जो विविध बिम्बों एवम् रूपकों में मेरी कविता में अभिव्यक्त हुए हैं। काव्य में बढ़ती बौद्धिकता एवम् वैचारिकता भी नगरीय जीवन शैली की परिचायक हैं।
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अशोक गौतम: कुँवर जी, आप हिन्दी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखते हैं। दो अलग भाषाओं के प्रयोग में आपका अनुभव अथवा अनुभूति किस प्रकार की है?
कुँवर दिनेश: मैं अंग्रेजी व हिन्दी दोनों भाषाओं में लिखता हूं और सहजतः लिखता हूं। भाषा का प्रयोग विचारों, मनोभावों व भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए किया जाता है। मैं किसी भाव या विचार को जिस भाषा की शब्दावली व मुहावरे में सहजता से और सुंदर ढंग से प्रस्तुत कर सकता हूं, उसी भाषा को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बना लेता हूं। प्रत्येक भाषा के सृजनात्मक प्रयोग में एक अलग कलात्मक परितोष का अनुभव तथा विशेष आनंद एवम् संतोष की अनुभूति होती है।
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डा0 अशोक गौतम
गौतम निवास,
अप्पर सेरी रोड, गलानग,
सोलन-173212 हि.प्र.

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