देखो तो एक सवाल हूँ ।
समझो तो , मैं ही जवाब हूँ ।।
उलझी हुई,इस ज़िन्दगी में।
सुलझा हुआ-सा तार हूँ।।
बैठे है दूर तुमसे , गम न करो ।
मैं ही तो बस, तेरे पास हूँ।।
जज्वात के समन्दर में दुबे है।
पर मैं ही , उगता हुआ आफ़ताब हूँ
रोशनी से भर गया सारा समा ।
पर मैं तो, खुद ही में जलता हुआ चिराग हूँ ।।
जैसे भी ज़िन्दगी है, दुश्मन तो नही है।
तन्हा-सी हूँ मगर, मैं इसकी सच्ची यार हूँ।।
जलते हुए जज्वात , आंखो से बुझेंगे ।
बुझ कर भी न बुझी, मैं ऐसी आग हूँ।।
कैसे तुम्हे बता दें , तू ज़िन्दगी है मेरी ।
अच्छी या बुरी जैसे भी, मैं घर की लाज हूँ ।।
कुछ रंग तो दिखाएगी , जो चल रहा है अब।
खामोशी के लबो पर छिड़ा , में वक्त का मीठा राग हूँ।।
कलकल-सी वह चली, पर्वत को तोड़ कर ।
मैं कैसे भूल जाऊ, मैं बस तेरा प्यार हूँ।।
भुजंग जैसे लिपटे है , चंदन के पेड़ पर ।
मजबूरियों में लिपटा हुआ , तेरा ख्बाव हूँ।।
चुप हूँ मगर , में कोई पत्थर तो नही हूँ।
जो तुम न कह सके, मैं वो ही बात हूँ
बस भी कर, के तू मुझको न याद आ ।
न वह सकेगा जो, में ऐसा आव हूँ।।
मेहदी न बारातै न सिन्दूर चाहिए ।
मान लिया हमने जब तुम ने कह दिया , मैं तेरा सुहाग हूँ।।
खुद को न समझना, कभी तन्हा और अकेला।
ज़िन्दगी के हर कदम पर , मैं तेरे साथ - साथ हूँ।।
समझो तो , मैं ही जवाब हूँ ।।
उलझी हुई,इस ज़िन्दगी में।
सुलझा हुआ-सा तार हूँ।।
बैठे है दूर तुमसे , गम न करो ।
मैं ही तो बस, तेरे पास हूँ।।
जज्वात के समन्दर में दुबे है।
पर मैं ही , उगता हुआ आफ़ताब हूँ
रोशनी से भर गया सारा समा ।
पर मैं तो, खुद ही में जलता हुआ चिराग हूँ ।।
जैसे भी ज़िन्दगी है, दुश्मन तो नही है।
तन्हा-सी हूँ मगर, मैं इसकी सच्ची यार हूँ।।
जलते हुए जज्वात , आंखो से बुझेंगे ।
बुझ कर भी न बुझी, मैं ऐसी आग हूँ।।
कैसे तुम्हे बता दें , तू ज़िन्दगी है मेरी ।
अच्छी या बुरी जैसे भी, मैं घर की लाज हूँ ।।
कुछ रंग तो दिखाएगी , जो चल रहा है अब।
खामोशी के लबो पर छिड़ा , में वक्त का मीठा राग हूँ।।
कलकल-सी वह चली, पर्वत को तोड़ कर ।
मैं कैसे भूल जाऊ, मैं बस तेरा प्यार हूँ।।
भुजंग जैसे लिपटे है , चंदन के पेड़ पर ।
मजबूरियों में लिपटा हुआ , तेरा ख्बाव हूँ।।
चुप हूँ मगर , में कोई पत्थर तो नही हूँ।
जो तुम न कह सके, मैं वो ही बात हूँ
बस भी कर, के तू मुझको न याद आ ।
न वह सकेगा जो, में ऐसा आव हूँ।।
मेहदी न बारातै न सिन्दूर चाहिए ।
मान लिया हमने जब तुम ने कह दिया , मैं तेरा सुहाग हूँ।।
खुद को न समझना, कभी तन्हा और अकेला।
ज़िन्दगी के हर कदम पर , मैं तेरे साथ - साथ हूँ।।
3 टिप्पणियां:
खुद को न समझना, कभी तन्हा और अकेला।
ज़िन्दगी के हर कदम पर , मैं तेरे साथ - साथ हूँ।।
बहुत सुन्दर रचना. बधाई.
बहुत सुन्दर रचना. बधाई.
bhai protsahit karne wala lekh hi hai to protshahit to karainge...
कुछ रंग तो दिखाएगी , जो चल रहा है अब।
खामोशी के लबो पर छिड़ा , में वक्त का मीठा राग हूँ।।
aur
मेहदी न बारातै न सिन्दूर चाहिए ।
मान लिया हमने जब तुम ने कह दिया , मैं तेरा सुहाग हूँ।।
khas taur par pasand aaiye.
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