18 सितंबर 2009

नवगीत: लोकतंत्र के शहंशाह की जय... --आचार्य संजीव 'सलिल'

नवगीत:

लोकतंत्र के
शहंशाह की जय...
*
राजे-प्यादे
कभी हुए थे.
निज सुख में
नित लीन मुए थे.
करवट बदले समय
मिटे सब-
तनिक नहीं संशय.
कोपतंत्र के
शहंशाह की जय....
*
महाकाल ने
करवट बदली.
गायब असली,
आये नकली.
सिक्के खरे
नहीं हैं बाकि-
खोटे हैं निर्भय.
लोभतंत्र के
शहंशाह की जय...
*
जन-मत कुचल
माँगते जन-मत.
मन-मथ,तन-मथ
नाचें मन्मथ.
लोभ, हवस,
स्वार्थ-सुख हावी
करुनाकर निर्दय.
शोकतंत्र के
शहंशाह की जय....

******

दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

4 टिप्‍पणियां:

गिरीश पंकज ने कहा…

संजीवजी, आपका ब्लॉग आज ही देखा. ख़ुशी हुई. आप तो इस मैदान के पुराने खिलाडी नज़र आ रहे मै नया हू.मेरा ब्लॉग भी देख ले. अभी तो केवल कविताये ही पोस्ट कर रहा हू. बहुत देर तक कम्पोज़ करने की आदत नहीं बनी है. आप की मेहनत साफ़ झलक रही है. अब इसे देखता रहूँगा. मेरा ब्लॉग भी ज़रूर देखे.

girish pankaj ने कहा…

mera blog hai-girish pankaj(http//sadhawanadarpan.blogspot.com)

शब्दकार-डॉo कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

bahut sundar ABHIVYAKTI ki hai aapne.
aapki kalam ke to ham hamesha kaayal rahe hain.
aapke aane se BLOG ko nai uchai mili hai.
sahyog hetu aabhar.

Divya Narmada ने कहा…

रचना आपको रुची तो हमारा रचना-कर्म सार्थक हुआ. उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद.