12 नवंबर 2009

डॉ0 वीरेन्द्र सिंह यादव की पर्यावरण सम्बन्धी पुस्तक का आलेख - समुद्री प्रदूषण

लेखक - डॉ० वीरेन्द्र सिंह यादव का परिचय यहाँ देखें
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अध्याय 9 = समुद्री प्रदूषण का अर्थ एवं इसके रोकने के उपाय
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समुद्र का सम्बन्ध आम आदमी से न होने के कारण मानव को ज्ञात ही नहीं हो पाता है कि इसमें पर्यावरण के प्रदूषण द्वारा कितनी क्षति पहुँच रही है। भारत का तीन ओर से समुद्र से आबद्ध होना इसकी सार्थकता को सिद्ध करता है। समुद्र तट पर भारत की 1/4 आबादी निवास करती है। पर्यावरणविदों के अनुसार महानगरों में रहने वाले लोग अपेक्षाकृत कूड़ा करकट एवं गंदगी फैलाते हैं इसके साथ ही महानगरों में औसतन एक व्यक्ति 120 लीटर पानी भी प्रयोग करता है। वहीं छोटे एवं मझोले कस्बों में यह खपत थोड़ी कम अर्थात 80 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन हो जाती है। समुद्र किनारे बसे महानगरों मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई आदि में प्रति वर्ष ढेर सारा सीवेज मिलता है। इसके साथ ही प्राकृतिक आपदाओं (भूकम्प, भूस्खलन सुनामी) के कारण जो मौतें एवं मलवा मिलता/निकलता है वह समुद्र में मिलकर इसको प्रदूषित कर देता है। इसके साथ ही अनेक नदियों एवं कारखानों एवं अन्य माध्यमों से जो अवशिष्ट तरल एवं ठोस पदार्थ समुद्र में मिलते हैं उसमें कुछ न कुछ अशुद्धियां अवश्य रहती हैं। इस तरह स्पष्ट है कि ‘‘समुद्री पर्यावरण में मनुष्य द्वारा प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से ऐसे पदार्थ या ऊर्जा का मिलाना जिससे इस प्रकार हानिकारी प्रमुख तत्व उत्पन्न हों। जिससे जीवों को हानि पहुँचे, मानव स्वास्थ्य के लिये संकट उत्पन्न हो; मछली मारने और समुद्री जल की गुणवत्ता में सुधार करने जैसे कार्यों में बाधायें हों और सुविधाओं में कमी हो।’’ समुद्री प्रदूषण की संज्ञा दी जाती है।
अनेक नवीन वैज्ञानिक अनुसंधानों ने समुद्र की उपयोगिता को जहाँ एक ओर बढ़ाया है वहीं इसमें रहने वाले जीवों हेंरिग, मैकरेल, सरडाइन जैसी मछलियों, वनस्पतियों तथा सामुद्रिक खाद्य पदार्थों को क्षति पहुँचानी शुरू कर दी है क्योंकि आण्विक परीक्षणों, औद्योगीकरण, जहाजों एवं टैंकरों के व्यापक परिवहन एवं जहरीले अवशिष्टों की मिलावट ने इन जीवों के साथ मानव को भी अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है। ऐसे में मानव के विस्तृत हितों को देखते हुये सभी लोगों को एक जुट होकर समुद्र प्रदूषण के कारकों को रोकने का प्रयास करना चाहिये।
भारत के निकटवर्ती सागरों में मिलने वाले ताजे पानी और प्रदूषकों की मात्रा
क्र. प्रतिवर्ष प्रदूषकों की मात्रा
1. प्रतिवर्ष नदियों द्वारा लाया गया पानी ==== 1,645 वर्ग किलोलीटर
2. अरब सागर पर होने वाली वार्षिक औसत वर्षा === 6,100 घन किलोलीटर
3. बंगाल की खाड़ी पर होने वाली वार्षिक औसत वर्षा === 6.5551012 घन कि. ली.
4. तटीय आबादी द्वारा सागरों में प्रतिवर्ष मिलाये जाने === 3,900000000 घन ली.
वाला सीवेज (60 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन की
दर से)
5. तटीय उद्योगों द्वारा सागरों में प्रतिवर्ष मिलाये === 3,90,00000 घन ली.
जाने वाले व्यर्थ पदार्थ
6. नदियों द्वारा प्रतिवर्ष लाये जाने वाला सीवेज === 500,00,000 घन ली.
7. अरब सागर पर से प्रतिवर्ष === 57,9000000
ढोये जाने वाला कुल तेल
8. देश के पश्चिमी तट पर प्रतिवर्ष === 750-1000 टन
गर्म होने वाली तारकोल की गोलियाँ
स्रोत - शशि एण्ड डा0 एन के तिवारी-पर्यावरण एक परिचय, पृ. 151
समुद्री प्रदूषण रोकने के उपाय
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यह प्रदूषण सामान्य प्रक्रिया से रोका नहीं जा सकता है परन्तु दृढ़ इच्छा शक्ति एवं सरकारी प्रयासों से ऐसा कोई कार्य नहीं है जो किया न जा सके। भारत सरकार ने हालांकि तटीय क्षेत्रों की राज्य सरकारों को निर्देश दिये हैं कि उच्च ज्वार रेखाओं वाले हिस्सों में 500 मीटर तक के क्षेत्र में किसी भी प्रकार के निर्माण पर रोक होनी चाहिये।
1. समुद्र में तेल रिसाव होने पर ऐसे जीव चूषकों का प्रयोग होना चाहिये जो उसे शीघ्र पीकर जल की तरह साफ कर सके।
2. ऐसी तकनीकों को विकसित किया जाना चाहिये जो समुद्र में फैली गन्दगी को अन्दर ही अन्दर समाप्त कर सके।
3. सरकार एवं स्वयंसेवी संस्थाओं की दृढ़ इच्छा शक्ति, व्यवस्थिति कार्य प्रणाली जिससे समुद्री जल को प्रदूषण से बचाया जा सके, इसका एकमात्र निदान है।

सम्पर्कः
वरिष्ठ प्रवक्ता: हिन्दी विभाग
दयानन्द वैदिक स्नातकोत्तर महाविद्यालय
उरई-जालौन (उ0प्र0)-285001

1 टिप्पणी:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत बढिया जानकारियां मिलीं. धन्यवाद.