03 नवंबर 2009

रोशनी की तलाश में

कविता ---

रोशनी की तलाश में

रोशनी की तलाश में
नई सदी
है शुष्क सी बहती नदी
हँसता पिशाच दे रहा घाव
नसों में फैल रहा जहरबाद ।

इसके आचमन को
रोक सकेगी ,
कोई मीरा ?
कंठ से उतार सकेगा
कोई शिव ?
गले लगा सकेगा
कोई गांधी ? इनके प्रतिमानों का
क्या हो सकेगा
प्रादुर्भाव ।

अनगिनत प्रश्न
जड़ कर रह गये हैं दिलों में ,
तोड़ रहे हैं उन्हें -हमें ,
और यह है सूर्योदय की
अनचाही एक शाम ।


सुधा भार्गव




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