फिर
भोर की लाली
मंद क्यूँ है ?
क्षितिज पर
सूरज
भी चेहरा
छुपाता क्यूँ है ?
पंछियों का
कलरव भी
सहमा - सहमा सा
सहमा - सहमा सा
क्यूँ है ?
शायद
कुछ लाचार बूढों ने
आसमान तले ठिठुर कर
दम तोड़ा होगा कहीं
शायद
कुछ नन्हे कन्धों पर
आ गया होगा फिर
कबाड़ बीनने का बोरा कहीं
शायद
कोई पगली
शिकार हुई होगी
फिर किसी
दरिंदगी की कहीं
हाँ
शायद
इसी लिए
प्रकृति भी शर्मिन्दा
बैठी होगी कहीं ॥
3 टिप्पणियां:
kya rachna hai...........
mind-blowing poem .no word of apreciation is enough to express my view according to this poem .keep it up your are most welcome on my blog ''vikhyat'
waah....adbhut...!!!
एक टिप्पणी भेजें