23 जनवरी 2011
लघु कथा -फूल
सिमरन दो साल के बेटे विभु को लेकर जब से मायके आई थी; उसका मन उचाट था.गगन से जरा सी बात पर बहस ने ही उसे यंहा आने के लिए विवश किया था.यूँ गगन और उसकी 'वैवाहिक रेल' पटरी पर ठीक गति से चल रही थी पर सिमरन के नौकरी की जिद करने पर गगन ने इस रेल में इतनी जोर क़ा ब्रेक लगाया क़ि यह पटरी पर से उतर गई और सिमरन विभु को लेकर मायके आ गयी.सिमरन अपने से निकली तो देखा विभु उस फूल की तरह मुरझा गया था जिसे बगिया से तोड़कर बिना पानी दिए यूँ ही फेंक दिया गया हो.कई बार सिमरन ने मोबाईल उठाकर गगन को फोन मिलाना चाह पर नहीं मिला पाई ये सोचकर क़ि ''उसने क्यों नहीं मिलाया?' मम्मी-पापा व् छोटा भाई उसे समझाने क़ा प्रयास कर हार चुके थे. विभु ने ठीक से खाना भी नहीं खाया था बस पापा के पास ले चलो क़ि जिद लगाये बैठा था.विभु को उदास देखकर आखिर सिमरन ने मोबाईल से गगन क़ा नम्बर मिलाया और बस इतना कहा-''तुम तो फोन करना मत,विभु क़ा भी ध्यान नहीं तुम्हे ?'' गगन ने एक क्षण की चुप्पी के बाद कहा -''सिम्मी मैं शर्मिंदा था......मुझे शब्द नहीं मिल रहे थे...........पर तुम अपने घर क़ा गेट तो खोल दो ........मैं बाहर ही खड़ा हूँ....!''यह सुनते ही सिमरन की आँखों में आंसू आ गए वो विभु को गोद में उठाकर गेट खोलने के लिए बढ़ ली. गेट खोलते ही गगन को देखकर विभु मचल उठा ........पापा.....पापा........'' कहता हुआ गगन की गोद में चला गया.सिमरन ने देखा की आज उसका फूल फिर से खिल उठा था और महक भी रहा था.
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10 टिप्पणियां:
रिश्तों की अहमियत को दर्शाती सुन्दर सार्थक सन्देश देती लघु कथा के लिये बधाई।
बहुत सुंदर, भाव पूरित लघुकथा मन को छू गई।
बहुत भावपूर्ण रचना.बधाई.
यही है.. दुनिया में लोगों के कद छोटे हो रहे हैं और अहम् बड़े...
सच रिश्तों मे अहम को नही आना चाहिये । वरना हमारे जीवन की बगिया को मुरझाने मे जरा भी समय नही लगता
भावपूर्ण कथा ...
रिश्तों की खुशबू खींच ही लेती है ... बहुत अच्छी कहानी ..
बहुत सुन्दर भावपूर्ण लघु कथा..
अति सुन्दर लघुकथा,रिश्तों की सुगन्ध से भरपूर ।
सुधा भार्गव
aap sabhi ka hardik dhanywad meri kahani ko sarahne ke liye .
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