जीवन था मेरा बहुत ही सुन्दर,
भरा था सारी खुशियों से घर,
पर ना जाने क्या हो गया
कहाँ से बस गया आकर ये डर.
पहले जीवन जीने का डर,
उस पर खाने-पीने का डर,
पर सबसे बढ़कर जो देखूं मैं
लगा है पीछे मरने का डर.
सब कहते हैं यहाँ पर आकर,
भले ही भटको जाकर दर-दर,
इक दिन सबको जाना ही है
यहाँ पर सर्वस्व छोड़कर.
ये सब कुछतो मैं भी जानूं,
पर मन चाहे मैं ना मानूं,
होता होगा सबके संग ये
मैं तो मौत को और पर टालूँ.
हर कोई है यही सोचता,
मैं हूँ इस जग में अनोखा,
कोई नहीं कर पाया है ये
पर मैं दूंगा मौत को धोखा.
फिर भी देखो प्रिये इस जग में जो भी आया है जायेगा,
इसलिए भले काम तुम कर लो तभी नाम ये रह जायेगा.
4 टिप्पणियां:
bahut shandar prastuti .
जीवन का फलसफा निखर कर आया है
वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
फिर भी देखो प्रिये इस जग में जो भी आया है जायेगा,
इसलिए भले काम तुम कर लो तभी नाम ये रह जायेगा.
बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति..
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