आदमी क्या है एक खिलौना है ,
जीवन में हँसना कम अधिक रोना है।
खुशिया मिलती हैं कभी कभी,
संग दुःख लाती तभी तभी।
खुशियाँ आयें या न आयें,
दुःख के पड़ जाते हैं साये।
दुःख अपना प्यारा साथी है,
निरंतर साथ निभाता है।
खुशियाँ बुलाने पर भी न आयें,
दुःख आ जाता है बिन बुलाये।
दुःख में विधि को हम याद करें,
सुख में न इसका ध्यान करें।
जो सुख में इसका ध्यान करें,
तो दुःख हम सब पर कैसे पड़े।
गलती हम करते जाते हैं,
पर स्वीकार न करते कभी।
इस कारण ही तो ऐसा है,
पड़ जाते जल्दी दुःख सभी।
दुखों की परम परंपरा है,
सुख तो एक व्यर्थ अप्सरा है।
दुखों की ही हर पल सोचें,
सुखों का कभी न ध्यान करें.
6 टिप्पणियां:
bilkul sahi falsafa bataya hai aapne .dukhon ki sochenge to shayad kabhi dukhi nahi honge .
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार 29.01.2011 को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
आपका नया चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
दुःख तो अपना साथी है...
सुन्दर अभिव्यक्ति.
दुख न हो तो सुख का महत्त्व कौन समझेगा..सुन्दर भाव..
सुख दुख आते जाते हैं, यह दुनिया चलती रहती है।
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