19 नवंबर 2011
01 जुलाई 2011
शब्दकार ब्लॉग बंद कर दिया गया है --- जानकारी
बहुत कुछ सहयोग मिलने के बाद भी लगातार कुछ न कुछ खालीपन सा, अधूरा सा महसूस होता रहा। इधर यह भी एहसास हो रहा था कि जिस सोच के साथ ब्लॉग शुरू किया है जब वह ही पूरा नहीं हो पा रहा है तो ब्लॉग संचालन की आवश्यकता ही नहीं रह जाती है। वैसे भी शब्दकार के सदस्य अपने-अपने ब्लॉग पर पूरी सक्रियता से उपस्थित हैं, ऐसे में शब्दकार के द्वारा कोई विशेष अथवा अभिनव कार्य नहीं किया जा रहा है।
कई दिनों की अपनी पशोपेश की स्थिति के बाद लगा कि शब्दकार को बन्द कर देना चाहिए। हालांकि अभी इसको अस्थायी रूप से बन्द किया जा रहा है, यदि भविष्य में किसी तरह का कुछ अलग सा करने का मन बना या कोई रास्ता दिखा तो इसे पुनः शुरू किया जायेगा।
एक बात शब्दकार के अपने साथियों से, जिन्होंने पूरी तन्मयता के साथ अपनी रचनाओं को प्रकाशित कर शब्दकार को महत्वपूर्ण बनाया, कि उनके लेखकीय अधिकारों को रोका सा गया है। हमारी मंशा है कि अब शब्दकार पर किसी तरह की पोस्ट का प्रकाशन न हो, इस कारण से सदस्यों की सदस्यता को शब्दकार से समाप्त करना हमारी मजबूरी रही। अभी हमें ब्लॉग का तकनीकी ज्ञान नहीं है, इस कारण ऐसा कदम उठाना पड़ा। आशा है आप लोग अन्यथा नहीं लेंगे।
एक बात अपने इंटरनेट के सभी साथियों से कि आज 1 जुलाई 2011 से शब्दकार पर किसी भी तरह की रचनाओं का प्रकाशन नहीं किया जायेगा। कृपया किसी भी रूप में रचनाओं को प्रकाशन हेतु न भेजें और न ही शब्दकार की सदस्यता के लिए अनुरोध करें। शब्दकार के सदस्यों की सदस्यता को भी इसी कारण से बाधित किया गया है कि वे भी अपनी रचनाओं का प्रकाशन शब्दकार पर न कर सकें।
शब्दकार अपनी 2 वर्ष 4 माह की इंटरनेट आयु बिताने के बाद अपनी 421 पोस्ट-इस पोस्ट के अतिरिक्त- के साथ अस्थायी रूप से बन्द हो रहा है। जिन लेखकों का, शब्दकार सदस्यों का, पाठकों का, टिप्पणीकारों का, आलोचकों का, शुभेच्छुओं का सहयोग शब्दकार को मिला उसका शब्दकार संचालक की ओर से आभार। आगे भी, यदि कोई अभिनव कार्य प्रारम्भ होता है तो, आप सभी का सहयोग पूर्व भी भांति प्राप्त होता रहेगा, ऐसी आशा की जा सकती है।
आभार सहित, धन्यवाद सहित, भरे मन से आपका
शब्दकार संचालक
डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
27 जून 2011
माँ जो चाहे तुमसे प्यारे वही काम तुम करना.
जीवन में गर चाहो बढ़ना,
माँ की पूजा करना.
माँ जो चाहे तुमसे प्यारे,
वही काम तुम करना.
माँ के आशीर्वाद को पाकर,
जब तुम कहीं भी जाओगे.
मनमाफिक हो काम तुम्हारा,
खुशियाँ सारी पाओगे.
कोई काम करने से पहले माँ का कहा ही करना,
माँ जो चाहे तुमसे प्यारे वही काम तुम करना.
माँ ने ही सिखलाया हमको,
बड़ों की सेवा करना.
करनी पड़े मदद किसी की,
कभी न पीछे हटना.
करो सहायता यदि किसी की अहम् न इसका करना,
माँ जो चाहे तुमसे प्यारे वही काम तुम करना.
शालिनी कौशिक
19 जून 2011
बापू !! बोल क्या करना है ???
18 जून 2011
खुदा करे कि वो इन जैसे लोगों को कभी माफ़ ना करे....!!
08 जून 2011
शोभा रस्तोगी 'शोभा' की दो लघुकथाएं
सबसे सुखी
'मै'- मेरे पास बैंक बेलेंस है 'घर है ,हर सुविधा है '- एक बोला।
'मै भी , ऊंची पोस्ट व धन के साथ कर भी है'-दूसरे का उत्तर था।
'मै' - एक अन्य व्यक्ति ने कहा तो सब हैरानी से बोले-'तुम ?तुम्हारे पास न धन, न घर। ऐसा कुछ भी नहीं जिसे सुख की श्रेणी में रखा जा सके। फिर तुम सुखी ? कैसे?'
'मै सुख -दुःख मै सम-भाव से रहता हूँ । न ज्यादा सुखी न अधिक दुखी।'
सब अचरज में थे।
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रावण की आत्मा
दशहरे के दिन रावन का पुतला जलने के लिए तैयार था। लोक समूह पुतले के इर्द-गिर्द जमा था।
ज्यों ही नेता ने मशाल पुतले की तरफ बढ़ाई त्यों ही रावण की आत्मा ने पुतले में प्रवेश किया। उसने हैरत से नेता को देखा। अपने से बड़ा रावण सामने खड़ा पाया। फिर भीड़ में दृष्टि डाली। अपने से कई गुना बड़े अनेक रावण उसे नज़र आये। घबराकर आँखें मूँद ली। चुपके से पुतले में से निकलने में ही भलाई समझी।
नेता ने पुतले को अग्नि के समर्पित कर दिया।
रचनाकार :---
पालम कालोनी, नई दिल्ली - ७७
06 जून 2011
लघुकथा
गुलाम /सुधा भार्गव

मेरे आते ही तुम सितार वादन लेकर बैठ जाती हो। सुबह का गया शाम को घर आता हूँ । पीछे से इसके लिए समय नहीं मिलता क्या !
-सारे दिन बच्चों की खिटपिट.नौकरानी की चखचख ----अभी तो साँस लेने को समय मिला है।
-इस समय तो थोड़ा मेरे पास आ जाओ |
--ओह !क्या चाहिए आपको- - -- --नाश्ता मेज पर रख दिया ,चाय नौकरानी ने बना दी । अब क्या- आपको खिलाऊँ- - - !
--हर्ज क्या है खिलाने में--- तुम्हारे एक स्पर्शमात्र से खाने का स्वाद दुगुना हो जायेगा ।
पल में सारी थकान मिट जायेगी।
-तुमने तो मुझे गुलाम समझ रखा है।
-तुम मेरी गुलाम ---न --न --न -----------!
गुलाम तो हुजूर हम हैं आपके -- सुबह से शाम तक खटते जो हैं ।
खाते खोलते है तो साझे में ,सारा पैसा होता है आपके हवाले। फिर नाचते है खाली जेब आपके इशारों पर।
अब आप ही बताइए कौन किसका गुलाम है- - - !
विशाल बड़ी अदा से वह सब कुछ कह गया जो उसके दिल में आया पर उसकी पत्नी उसे दिल से लगा बैठी ।
गुलाम शब्द ने फिर मुड़कर उनके दरवाजे की ओर न देखा |ऐसा भागा -जैसे उसकी चोरी पकड़ ली गई हो
* * * * *
लघुकथा
दुविधा /सुधा भार्गव

एक परी थी। जैसे -जैसे यौवन की दहलीज पर कदम बढ़े उसकी सुन्दरता बढ़ती गई। रंग -बिरंगे पंख निकल आये। जिन पर सवार हो वह कल्पना जगत की सैर करना ज्यादा पसंद करती।
बाहर आने में जरा सी भी देर हो जाती, उसकी माँ घबरा उठती-- कहीं उसकी बेटी को नजर न लग जाये -कोई उसके पंख मैले न कर दे ।
एक दिन वह बोली -
-मेरी बेटी, तुझ पर बलिहारी जाऊँ ---अब तू बड़ी हो गई है ----घर -बाहर मक्खियाँ जरूर भिनभिनाती होंगी ।
बाहर कोई मक्खी तुझे तंग करे--- तो तू क्या करेगी?
-करना क्या है चट से मसल दूंगी।
-और अगर घर की मक्खी परेशानी का कारण बन जाये तो ----।
माँ के इस प्रश्न ने परी को असमंजस में डाल दिया।
-हकलाते हुए बोली ---साथ -साथ रहते तो अपनापन लगने लगता है। उन्हें कैसे मसलूं -।
-प्रश्न अपने- परायेपन का नहीं हैं !सवाल है अन्दर की मक्खियों से अपनी रक्षा कैसे की जाय ---?
दुविधा के भार से झुकी आँखें--- ऊपर उठीं ।
-सोचना क्या -----! उनको भी मसलना होगा कभी- कभी बाहर से ज्यादा खतरनाक इंसानियत का मुखौटा पहने ये - - - -अन्दर की मक्खियाँ होती हैं जिनको पहचानने में अक्सर नजरें धोखा खा जाती हैं।
माँ का इशारा समझ परी ने आगे की ओर उड़ान भरनी शुरू कर दी। दुविधा की केंचुली उसने उतर फेंकी थी ।
* * * * *
01 जून 2011
माँ को शीश नवाना है.
होगा जब भगवान् से मिलना हमें यही तब कहना है,
नमन तुम्हे करने से पहले माँ को शीश नवाना है.
माँ ने ही सिखलाया हमको प्रभु को हर पल याद करो,
मानव जीवन दिया है तुमको इसका धन्यवाद् करो.
माँ से ही जाना है हमने क्या क्या तुमसे कहना है,
नमन तुम्हे करने से पहले माँ को शीश नवाना है.
जीवन की कठिनाइयों को गर तुम्हे पार कर जाना है ,
प्रभु के आगे काम के पहले बाद में सर ये झुकाना है.
शिक्षा माँ की है ये हमको तुमको ही अपनाना है,
नमन तुम्हे करने से पहले माँ को शीश नवाना है.
माँ कहती है एक बार गर प्रभु के प्रिय बन जाओगे,
इस धरती पर चहुँ दिशा में बेटा नाम कमाओगे.
तुमसे मिलवाया है माँ ने इसीलिए ये कहना है,
नमन तुम्हे करने से पहले माँ को शीश नवाना है.
शालिनी कौशिक
27 मई 2011
मीटिंग -लघु कथा
20 मई 2011
तुम सिर्फ़ एक अहसास हो ........!!
11 मई 2011
अशोक जी की कविता -- बेटियाँ
ओस की बूंदों सी होती हैं बेटियाँ ! | |
खुरदरा हो स्पर्श तो रोती हैं बेटियाँ !! | |
रौशन करेगा बेटा बस एक ही वंश को ! | |
दो - दो कुलों की लाज ढोतीं हैं बेटियाँ !! | |
कोई नहीं है दोस्तों एक दुसरे से कम ! | |
हीरा अगर है बेटा तो मोती है बेटियाँ !! | |
काँटों की राह पर खुद चलती रहेंगी ! | |
औरों के लिए फूल ही बोती हैं बेटियाँ !! | |
विधि का है विधान या दुनिया की है रीत ! | |
क्यों सबके लिए भार होती हैं बेटियाँ !! | |
धिक्कार है उन्हें जिन्हें बेटी बुरी लगे ! | |
सबके लिए बस प्यार ही संजोती है बेटियाँ | |
Ashok jangra
Executive DraughtsMan(C)
Architecture Department,
ARCH CONSULTANT
Architect-Engineers,Int.Designers
08 मई 2011
कोई हक़ नहीं -लघु कथा
04 मई 2011
दिव्या गुप्ता जैन की काव्य रचना
नापाक इरादों को कभी मंजिल नहीं मिलती
खुदा के नाम पर कत्ले आम करने वालों को,
जन्नत तो क्या, दो गज जमीन भी नहीं मिलती,
ताउम्र वो करते रहे अपनी कौम को बदनाम,
फिर अपनी कौम से ही उनको मोहब्बत नहीं मिलती,
इस भ्रम वो जीते रहे की हो रहे है दे रहे बलिदान,
कत्ले-आम किसी भी धर्म की सीरत नहीं होती!!!!!
-दिव्या गुप्ता जैन (4th May, 2011)
24 अप्रैल 2011
सत्य साईं बाबा - अध्यात्मिक जगत के एक स्तम्भ
सत्य साईं बाबा भारत के आध्यात्मिक जगत का एक लोकप्रिय स्तम्भ थे , उनके चमत्कारों व कार्यशैली पर कितना भी विवाद क्यों न रहा हो , उनकी स्वीकार्यता निरंतर बढ़ती ही रही । शिर्डी एवं पुटपर्थी साई भक्तों के तीर्थस्थल बन गये । शिर्डी में जहाँ भक्तों की श्रद्धा ने वहाँ के ट्रस्ट को करोडो का दान दे कर समृद्ध किया वहाँ सत्य साईं बाबा की सेवा में भक्तों ने तन-मन-धन से अपना योगदान दिया , पर श्ग्र्दी का स्थल जहाँ केवल धार्मिक व आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा वहाँ सत्य साई बाबा ने समाज सेवा एवं मानव सेवा में महत्वपूर्ण योगदान दिया , इसका उदाहरण उनके द्वारा स्वास्थ्य , शिक्षा एवं समाज सेवा की दृष्टि से संचालित अनेक महत्वपूर्ण परियोजनाओं से है जिन्हें आज भी उत्कृष्टता की दृष्टि से मान्यता एवं सामाजिक स्वीकार्यता प्राप्त है । इस रूप में उनका योगदान किसी भी आध्यात्मिक हस्ती ,गुरु या बाबा की तुलना में महत्वपूर्ण हो जाता है। उनका निधन देश व समाज की कभी न पूरी होने वाली क्षति है । उनके पार्थिव शरीर को देख कर निम्नांकित उदगार अभिव्यक्त हो पड़े -
आँसू आये उन्हें देख कर, मन बोझिल हो आया ,
जिसने है कुछ किया, उसी ने सबका आदर पाया।
एक ब्लॉग से लौट कर बिना किसी क्षमायाचना के......!!
सन्दर्भ :http://blostnews.blogspot.com/
हरीश जी,हालांकि इस विषय के विरुद्द कुछ लिखने का मन तो नहीं होता,किन्तु माननीय अनवर जी (और कतिपय अन्य लोगों के भी)के सामान्य ज्ञान हेतु कुछ बताने से खुद को मैं रोक नहीं पा रहा हूँ कि लिंग और योनि पूजन सिर्फ वर्तमान भारतीय धर्म के अंश नहीं है अपितु यह ना जाने कब से धरती के हर हिस्से में हर काल में पाया जाता है,भारत,मिस्र,करीत,बेबिलोनिया,
सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है हरीश जी,कि आज जिस काम को हम पाप की दृष्टि से देखते हैं(मजा यह कि दिन-रात इसी के पीछे भागते भी रहते हैं...हा..हा...हा...हा..हा..हर किसी को हम इस पाप-कर्म से दूर रहने की शिक्षा देते रहते हैं,और खुद.....!!और मजा यह कि हम सबके साथ ही लागू है!!)तो किसी जमाने में यही "काम" अत्यंत पवित्र कार्य हुआ करता था और यहाँ तक कि लोग देवालयों में ईश्वर को साक्षी बना कर सम्भोग किया करते थे और यह भी जान लीजिये कि यह कार्य स्त्री-पुरुष विवाह-पूर्व ही किया करते थे,तत्पश्चात उनकी ईच्छा कि वे आपस में विवाह करें या ना करें,इससे इस पवित्र "सम्भोग-कार्य" की प्रतिष्ठा पर कोई आंच नहीं आती थी,यह कार्य असल में ईश्वर की सेवा को समर्पित था,इसकी डिटेल के लिए अलग से एक अध्याय लिखना होगा, आप बस यह जान लो कि ऐसी प्रथाएं आज से दो हजार साल पूर्व तक हुआ करती थीं....ये प्रथाएं कब और कैसे शुरू हुईं,किस प्रकार पल्लवित-पुष्पित हुईं और क्योंकर बंद हुईं,यह सब भी इतिहास में बाकायदा दर्ज है....!!और हिन्दू धर्म-ग्रंथों में ही क्यूँ बाईबिल में भी दर्ज हैं,मुस्लिम धर्म पर कुछ कहूंगा तो अनवर भाई नाराज़ हो जायेंगे... मगर मेरे भाई जब तथ्यों को देखा-परखा या जांचा जाता है,तब हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई की तरह नहीं सोचा जाता... और इस विषय पर अगर किसी को मेरे तथ्यों पर कोई एतराज हो तो वाद-विवाद कर ले,तथ्य किसी व्यक्ति या समाज के नहीं होते वो तो इतिहास के अविभाज्य अंश होते हैं !!
अब जहां तक विज्ञान की बात है तो परम्पराओं का कोई विज्ञान है कि नहीं,इसकी परख कौन करेगा ?
कौन-सी परम्परा का उत्स क्या है,कैसे वो समय के साथ अपभ्रंश हो गयी,उसमें कैसे-कैसे विकार पैदा हो गए,यह जानने के हिमाकत कौन करता है?हम अपने देश की परम्पराओं को या धरती पर के इतिहास को कितना जानते समझते और खंगालते हैं,यह तो भाई अनवर के आलेख से साफ़ जाहिर होता है...लाखों ऐसी छोटी-छोटी बातें हैं,जो आज भी हमारी दादी माँ और नानी माँ की कहानियों में है,मगर हम जिन्हें अक्सर जांचे बगैर बेतुका करार देते हैं, अनेक ऐसे तथ्य हमारे ग्रामीण समाज में बिलकुल सतह पर हैं,जिन्हें हम शहरवासी उनका गंवारपन समझते हैं,ठीक इसी प्रकार उपरोक्त तथ्य भी है,जिसकी डिटेल हमें ना सिर्फ रोचक लगेगी,वरन गरिमापूर्ण और अचंभित करने वाली भी है,योनि और लिंग पूजन का आदि स्त्रोत हिन्दू नहीं अपितु आदि-मानव है,यहाँ तक कि बहुत से स्थानों पर सिर्फ लिंग या सिर्फ योनि भी पूजे जाते रहे हैं अंतर मात्र इतना है कि सभ्यताओं के विकास के संग विभिन्न तरह के आवश्यकताओं या अन्य किन्हीं कारणों से वे स-प्रयास हटा या मिटा दिए गए हैं,किन्तु भारत नाम के इस विसंगतिपूर्ण देश में हिन्दू नाम की एक असंगतिपूर्ण जाति ने इस परम्परा को अभी तक थाम कर रखा हुआ है,बेशक यह बिना जाने हुए कि इसका कारण क्या है...किन्तु तब भी कोई महज इस कारण गलीच तो नहीं हो जाता ना कि वो नहीं जानता कि वह जिस परम्परा का पोषण कर रहा है,उसका और या छोर क्या है ??
उचित निर्णय युक्त बनाना
जो बनते हैं सबके अपने,
निशदिन दिखाते हैं नए सपने,
ऊपर-ऊपर प्रेम दिखाते,
भीतर सबका चैन चुराते,
ये लोगों को हरदम लूटते रहते हैं,
तब भी उनके प्रिय बने रहते हैं.
ये करते हैं झूठे वादे,
भले नहीं इनके इरादे,
ये जीवन में जो भी पाते,
किसी को ठग के या फिर सताके,
ये देश को बिलकुल खोखला कर देते हैं ,
इस पर भी लोग इन पर जान छिड़कते हैं.
जब तक ऐसी जनता है,
तब तक ऐसे नेता हैं,
जिस दिन लोग जाग जायेंगे,
ऐसे नेता भाग जायेंगे,
अब यदि चाहो इन्हें हटाना,
चाहो उन्नत देश बनाना,
सबसे पहले अपने मन को,
उचित निर्णय युक्त बनाना.
shalini kaushik
08 अप्रैल 2011
उठ रही है आग आज मिरे सीने में !!
07 अप्रैल 2011
तारों भरा आकाश
03 अप्रैल 2011
हारी लंका , बजा क्रिकेट में भारत का डंका
मैच फायनल, था क्या हाल ? अंतिम क्षण तक मन बेहाल ।
सबका रहा धड़कता दिल ,जबतक जीत गयी नहीं मिल।
सबने अच्छी क्रिकेट खेली ,सबकी अपनी-अपनी शैली ।
पलड़ा कभी, किसी का झुकता,हर दर्शक का ह्रदय उछलता ।
जब हुए सहवाग,सचिन आउट ,लगा जीत में अब है डाउट ।
गौतम निकले अति गंभीर,भारत की अच्छी तक़दीर ।
था विराट का सुखद प्रयास ,जिससे बधीं जीत की आस ।
फिर धोनी की सुन्दर पारी ,जिससे बिखरीं खुशिया सारी ।
किया बालरों ने भी कमाल ,फील्डिंग से रहे विरोधी बेहाल ।
वर्ष अठाईस का इंतजार ,ख़त्म किया कैप्टन ने छक्का मार।
सर्वश्रेष्ठ अपना युवराज ,हर भारतवासी को नाज ।
हुईं ख़ुशी से आँखें नम ,आखिर जीते वर्ल्ड कप हम ।
रूप कोई भी हो क्रिकेट का ,भारत अब है नंबर वन ।
02 अप्रैल 2011
जय भारत....जय हिन्दुस्तान....
जय भारत....जय हिन्दुस्तान....
ये जीत भारत के जज्बे की है...अनुशासन की है....और टीम भावना की है.....
इस जीत का सबक यह है कि अगर भारत अन्य क्षेत्रों में भी यही टीम भावना-अनुशासन और जज्बे से काम करे तो वह हर क्षेत्र में दुनिया का सिरमौर बन सकता है....
भारत के लोगों को चाहिए कि वो देखें कि किस तरह देश के एक होना चाहिए और अपने स्वार्थ त्याग कर भारत के हित में कार्य करना चाहिए....
भारत....भारत....भारत....भारत.....हर एक जिहवा में यही एक नाम है.....
भारत नाम का यह शब्द कभी मिटने ना पाए.....आईये इस बात का हम सब संकल्प करें.....
भारत की आन-बान-शान को बनाए रखने का हम सब मिलकर प्रयास करें.....
जश्न----जश्न ....और जश्न .....हर तरफ जोश ....जूनून ....हुजूम .....और शोर -शराबा .....
ऐसा मंजर भला कब दिखाई देगा.....जिसे हमारे बच्चे याद रखेंगे.....
आईये हम सब भी मिलकर कुछ ऐसा करें.....कि अपने-अपने स्तर पर किसी ना किसी प्रकार के धुनी....युवराज....और गंभीर या सचिन बन सकें..
भीड़.....भीड़.....भीड़....बधाईयाँ.....और आने वाले कल की शुभकामनाएं.....
दुनिया का उभरते हुए भारत का सलाम.....और अन्य देशों को चुनौती.....
मैं अब विकल हूँ इस बात के लिए....कि भारत का जन-जन भारत के लाभ के लिए और इसके गौरव के लिए कार्य करे.....काश कि अब भी हमारे नेताओं को सदबुद्धि आ सके...
क्यूंकि वही देश के गौरव को और उंचा उठाने में देश के जन-जन की मदद कर सकते हैं....
देश के हर नागरिक के लिए जीवन यापन की उचित सुविधाएं अगर ये लोग उपलब्ध करवा सकें.....तो सचमुच भारत सही मायनों में जीत पायेगा,,,,,जय भारत....जय हिन्दुस्तान....
ये जीत भारत के जज्बे की है...अनुशासन की है....और टीम भावना की है.....
इस जीत का सबक यह है कि अगर भारत अन्य क्षेत्रों में भी यही टीम भावना-अनुशासन और जज्बे से काम करे तो वह हर क्षेत्र में दुनिया का सिरमौर बन सकता है....
भारत के लोगों को चाहिए कि वो देखें कि किस तरह देश के एक होना चाहिए और अपने स्वार्थ त्याग कर भारत के हित में कार्य करना चाहिए....
भारत....भारत....भारत....भारत.....हर एक जिहवा में यही एक नाम है.....
भारत नाम का यह शब्द कभी मिटने ना पाए.....आईये इस बात का हम सब संकल्प करें.....
भारत की आन-बान-शान को बनाए रखने का हम सब मिलकर प्रयास करें.....
जश्न----जश्न ....और जश्न .....हर तरफ जोश ....जूनून ....हुजूम .....और शोर -शराबा .....
ऐसा मंजर भला कब दिखाई देगा.....जिसे हमारे बच्चे याद रखेंगे.....
आईये हम सब भी मिलकर कुछ ऐसा करें.....कि अपने-अपने स्तर पर किसी ना किसी प्रकार के धुनी....युवराज....और गंभीर या सचिन बन सकें..
भीड़.....भीड़.....भीड़....बधाईयाँ.....और आने वाले कल की शुभकामनाएं.....
दुनिया का उभरते हुए भारत का सलाम.....और अन्य देशों को चुनौती.....
मैं अब विकल हूँ इस बात के लिए....कि भारत का जन-जन भारत के लाभ के लिए और इसके गौरव के लिए कार्य करे.....काश कि अब भी हमारे नेताओं को सदबुद्धि आ सके...
क्यूंकि वही देश के गौरव को और उंचा उठाने में देश के जन-जन की मदद कर सकते हैं....
देश के हर नागरिक के लिए जीवन यापन की उचित सुविधाएं अगर ये लोग उपलब्ध करवा सकें.....तो सचमुच भारत सही मायनों में जीत पायेगा,,,,,जय भारत....जय हिन्दुस्तान....
27 मार्च 2011
चार सौ का आंकड़ा छूने की बधाई -- सुझाव आमंत्रित हैं
400 के आंकड़े को शब्दकार के द्वारा छूने के बाद भी लगता है कि जो सोचकर इस ब्लॉग को शुरू किया था, वह उद्देश्य अभी भी कहीं से पूरा होते नहीं दिखता है। पूरा क्या अभी उसके आसपास भी पहुंचता नहीं दिखता है। शब्दकार आप सभी के सामूहिक प्रयास का सुखद परिणाम है तथा इसको और भी अधिक सुखद बनाने के लिए आप सभी का पर्याप्त सहयोग अपेक्षित है।
इस बार आप सभी सदस्यों से और शब्दकार के पाठकों से इस बात की अपेक्षा है कि वे शब्दकार को और अधिक लोकप्रिय, और भी अधिक सारगर्भित, और भी अधिक साहित्यिक बनाने के लिए हमें अपने-अपने स्तर पर सुझाव भेजने का कष्ट करें।
चूंकि सभी सदस्यों के व्यक्तिगत ब्लॉग हैं और सभी अपने-अपने स्तर पर उत्कृष्ट लेखन करके हिन्दी भाषा तथा साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं। ऐसे में शब्दकार जैसे सामुदायिक ब्लॉग की आवश्यकता क्यों और किस कारण से पड़ी है? ऐसा क्या किया जाये कि सभी को, चाहे वह इस ब्लॉग का सदस्य हो अथवा पाठक, यहां की सामग्री के अध्ययन के द्वारा कुछ सार्थकता प्राप्त हो सके। इसमें हम अकेले कुछ नहीं हैं, आप सभी इसके महत्वपूर्ण अंग हैं।
अतः शब्दकार को अपना ब्लॉग मानकर, समझकर इस सम्बन्ध में अपने अमूल्य सुझाव अवश्य देवें कि इसे कैसे और अधिक प्रभावी तथा लोकप्रिय बनाया जा सके। सभी सदस्यों और पाठकों को शब्दाकर के चार सौ का आंकड़ा छूने पर बधाई तथा शुभकामनायें। सभी लेखक सदस्यों का विशेष आभार जो अपने सहयोग से, अपनी रचनात्मकता से शब्दकार को लोकप्रिय तथा जीवन्त बनाये हुए हैं।