नवगीत:
आचार्य संजीव 'सलिल'
कौन किताबों से
सर मारे?...
*
बीत गया जो
उसको भूलो.
जीत गया जो
वह पग छूलो.
निज तहजीब
पुरानी छोडो.
नभ की ओर
धरा को मोड़ो.
जड़ को तज
जडमति पछता रे.
कौन किताबों से
सर मारे?...
*
दूरदर्शनी
एक फलसफा.
वही दिखा जो
खूब दे नफा.
भले-बुरे में
फर्क न बाकी.
देख रहे
माँ में भी साकी.
रूह बेचकर
टका कमा रे...
कौन किताबों से
सर मारे?...
*
बटन दबा
दुनिया हो हाज़िर.
अंतरजाल
बन गया नाज़िर.
हर इंसां
बन गया यंत्र है.
पैसा-पद से
तना तंत्र है.
निज ज़मीर बिन
बेच-भुना रे...
*
2 टिप्पणियां:
Wah......
nice
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