नवगीत:
गीत का बनकर / विषय जाड़ा
--संजीव 'सलिल'
*
गीत का बनकरविषय जाड़ा
नियति पर
अभिमान करता है...
*
कोहरे से
गले मिलते भाव.
निर्मला हैं
बिम्ब के
नव ताव..
शिल्प पर शैदा
हुई रजनी-
रवि विमल
सम्मान करता है...
*
गीत का बनकर
विषय जाड़ा
नियति पर
अभिमान करता है...
*
फूल-पत्तों पर
जमी है ओस.
घास पाले को
रही है कोस.
हौसला सज्जन
झुकाए सिर-
मानसी का
मान करता है...
*
गीत का बनकर
विषय जाड़ा
नियति पर
अभिमान करता है...
*
नमन पूनम को
करे गिरि-व्योम.
शारदा निर्मल,
निनादित ॐ.
नर्मदा का ओज
देख मनोज-
'सलिल' संग
गुणगान करता है...
*
गीत का बनकर
विषय जाड़ा
'सलिल' क्यों
अभिमान करता है?...
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3 टिप्पणियां:
:)
jare ke vividhta ko kitne pyare dhang se chitrit kiya gaya hai...!!
निर्मला हैं
बिम्ब के
नव ताव..
चलिये मेरा नाम भी सार्थक हुया आपकी कलम से जो निकला और आपकी कलम मे तो माँ शारदे बसती हैं। सुन्दर रचना के लिये बधाई।
bahut sundar bhavon ko samete bhavbhari kavita .badhai .mere blog''merikahaniyan' par aapka hardik sawagat hai .
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